Friday, January 18, 2019

मेरी पहली मुंबई यात्रा- पहली किस्त

3 जनवरी : कभी ना सोने वाला शहर मुंबई। जो कभी बंबई कहलाता था। बम.. बम…बम… बंबई। बंबई हमको जम गई। आमची मुंबई। मुंबई मेरी जान। कितने ही नामों से इस शहर को लोगों ने पुकारा है। मुंबई देखना हर किसी का सपना होता है। हमारी भी चाहत थी कि एक बार मुंबई की सैर की जाए।

लेकिन जिस तरह से यह यात्रा हुई है। भगवान ना करें किसी और की हो। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा। मुंबई जाने का जो अचानक प्लान बना, उसके पीछे था कैंसर। जी हां, वही कैंसर की बीमारी जो इन दिनों आम हो चली है।

क्रिकेट, फिल्म और राजनीति के बड़े नाम भी इसकी चपेट में है। हाल ही में हमारे देश के 2 बड़े राजनेताओं को भी कैंसर हो गया है। हमारे एक रिलेटिव को कैंसर डिटेक्ट हुआ था, आज से करीब डेढ़ साल पहले। उनका मुंबई के बड़े हॉस्पिटल टाटा मेमोरियल में इलाज चल रहा है। जहां वे अब ज्यादा स्वस्थ महसूस कर रहे हैं।

तो जैसा कि अंदेशा था कि अचानक कभी भी मुझे मुंबई जाना पड़ सकता है और वह तारीख आ गई 3 जनवरी 2019। ऑफिस से किसी तरह छुट्टी लेकर मैं देर रात की गीतांजलि एक्सप्रेस से मुंबई के लिए रवाना हुआ। रायपुर स्टेशन से जब ट्रेन छूटी। समय था रात के 2:30 बजे का। थर्ड एसी में रिजर्वेशन था। हालांकि वेटिंग टिकट था। रात को टीटी ने आकर सेकंड एसी का कंफर्म टिकट बनाया। इस तरह सफर शुरू हुआ मुंबई का। लगभग पूरा सफर सोने में ही बीता।

हालांकि दिन में कुछ समय मुसाफिरों से सार्थक चर्चा भी हुई। इसमें एक थे माइनिंग इंजीनियर, एक थे रेलवे के टेक्निकल इंजीनियर और एक थे आला अफसर। सभी से बातचीत में कई नई जानकारियां मिली। जैसे - खदानों में खास तरह के खनिज पदार्थ निकालने के लिए क्या-क्या मशक्कत होती है, किसी खदान में खतरनाक गैसों से कैसे बचा जाता है। माइनिंग इंजीनियर ने बताया कि सालों पहले खतरनाक गैसों का पता लगाने के लिए एक पिंजरे में एक पक्षी को लेकर जाया करते थे। और जब वह पक्षी तड़पने लगता था तो तत्काल बाद वहां से सारे कर्मचारी, मजदूर भाग जाते थे। क्योंकि पक्षी का तड़पना इस बात का संकेत होता था कि वहां से खतरनाक गैस शुरू हो गई है। और ज्यादा देर तक रुकने से मौत हो सकती है। इसी तरह चर्चा यह भी हुई कि देश के किन राज्यों में कहां-कहां पर कीमती खनिज तत्वों सोने, चांदी, यूरेनियम आदि की खदानें हैं।

रायपुर से होकर नागपुर, भुसावल और नासिक रोड होते हुए रात 9:00 बजे करीब हम मुंबई के दादर स्टेशन पर उतरे। दादर छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के पहले आता है। और क्योंकि हमें दादर इलाके में ही जाना था, इसीलिए हमने यहीं पर उतरने का फैसला किया। दादर स्टेशन से बाहर निकलते ही मुंबई के बाजार से सामना होगा। वह बाजार, जहां मुसाफिरों के लिए जरूरत की हर चीजें मिल जाती है। वह भी बेहद सस्ते दामों में।

अगली किस्त में आप पढ़ेंगे…

आखिर कहां मिला हमें ठौर ठिकाना…

मुंबई में रात को वहां तक पहुंचते वक्त कैसा महसूस हुआ…

कैसा होता है टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल का नजारा…

तो इंतजार कीजिए अगली किस्त का…

शुक्रिया…