Friday, October 17, 2025

सत्ता को दो-टूक जवाब: 'मैं संपादक हूँ, खबर मैं तय करूँगा, आप नहीं!’

किस्सा संपादक का : पहली किस्त

आज मैं तेज-तर्रार पत्रकार और संपादक आनंद पांडे जी से जुड़ा एक रोचक किस्सा साझा करना चाहता हूं। पांडे जी, जो वर्तमान में 'द सूत्र' से जुड़े हैं और चर्चा में हैं, उस समय रायपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक थे।
यह बात उस वक्त की है जब मैंने अमर उजाला, नोएडा छोड़कर उस अखबार में नौकरी शुरू की थी। वहां के संपादक आनंद पांडे जी के तेवर देखते ही बनते थे। एक बार हमारे होनहार रिपोर्टर गोविंद पटेल ने एक सनसनीखेज खबर फाइल की। 

खबर थी कि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा के बड़े नेता गौरीशंकर अग्रवाल के बंगले में 48 एयर कंडीशनर (एसी) लगे थे। यह खबर सरकारी बंगलों में रखरखाव और मरम्मत के नाम पर होने वाली फिजूलखर्ची को उजागर करती थी।

खबर छपते ही रायपुर के राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया, चर्चाएं गर्म हो गईं और स्वाभाविक रूप से गौरीशंकर जी नाराज हो गए। अगले दिन सुबह की मीटिंग के दौरान पांडे जी के पास गौरीशंकर अग्रवाल का फोन आया।

उन्होंने सवाल किया, 

“आनंद जी, क्या आपको लगता है कि मेरे बंगले की यह खबर पहले पेज पर टॉप बॉक्स में छपने लायक थी? क्या यह इतनी बड़ी खबर थी?” 

पांडे जी ने तुरंत सख्त लहजे में जवाब दिया, 

“गौरीशंकर जी, आप राजनेता हैं, अपना काम करें। मैं संपादक हूँ, मेरा काम करूँगा। कौन सी खबर कहाँ छपेगी, यह मैं तय करूँगा, आप नहीं।” 

यह सुनते ही गौरीशंकर जी की बोलती बंद हो गई और बातचीत आगे बढ़ना मुश्किल था। 

इस घटना ने मुझे पांडे जी के बेबाक तेवर दिखाए। एक सच्चा संपादक वही होता है जो सच का साथ दे और झूठ को बर्दाश्त न करे, चाहे सामने कितना बड़ा व्यक्ति क्यों न हो। 

इसी तरह का एक और किस्सा भोपाल के प्रतिष्ठित संपादक गिरीश मिश्र जी का है। जब वे एक अखबार के संपादक थे, तब मालिक ने उनसे कहा कि वे मुख्यमंत्री निवास जाकर मुख्यमंत्री से मुलाकात करें। 

मिश्र जी ने दो टूक जवाब दिया, “मैं संपादक हूँ, मेरा काम अखबार को बेहतर बनाना है। अगर किसी को मुझसे मिलना है, तो वे मेरे दफ्तर आएँ। मैं किसी के पास नहीं जाऊँगा।” 

ऐसे तेवर वाले संपादक कम ही देखने को मिलते हैं, लेकिन अक्सर ऐसे लोग मालिकों को पसंद नहीं आते। बाद में मिश्र जी को उस अखबार से हटना पड़ा, हालांकि वे दूसरे अखबार के संपादक बने। 

आनंद पांडे जी और 'द सूत्र' की खबरों को देखकर लगता है कि वे केवल वही दिखाते हैं जो जनता को जानना चाहिए। राजस्थान के घटनाक्रम “दीया तले अंधेरा” सीरीज को आप देखेंगे तो समझ पाएंगे कि जो दिखाया गया है, वह जनता को जरूर देखना चाहिए। 

 'द सूत्र' के वीडियो देखकर आप भी अपनी राय बना सकते हैं कि क्या वे कुछ गलत कर रहे हैं। 

कृपया अपनी राय जरूर बताएं कमेंट में आपका स्वागत है….। 

~~ रामकृष्ण डोंगरे, पत्रकार व यूट्यूबर, डोंगरेजी ऑनलाइन ~~

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