Thursday, March 31, 2022

Goodbye Bhaskar : अलविदा भास्कर... दैनिक भास्कर के साथ अपनी पहली पारी को फिलहाल देता हूं विराम...

दैनिक भास्कर रायपुर में अपने 8 साल से ज्यादा लंबे सफर को फिलहाल विराम दे रहा हूं। सितंबर 2013 में मैंने दैनिक भास्कर रायपुर ज्वाइन किया था। यहां मैं बतौर "सिटी डेस्क हेड" अपनी जिम्मेदारी निभाता रहा। 

(दैनिक भास्कर रायपुर में आखिरी दिन। 31 मार्च 2022)

इस दौरान भास्कर रायपुर में कई चेंजेज हुए, कई बदलाव हुए… *बदलाव, परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जिसे शायद ही कोई रोक पाया है। 

(परीक्षित त्रिपाठी जी के साथ) 

जब मैंने ज्वाइन किया था। तब श्री आनंद पांडेय जी, संपादक स्टेट एडिटर हुआ करते थे। उसके बाद श्री राजेश उपाध्याय सर आए और अब श्री शिव दुबे सर के मार्गदर्शन में दैनिक भास्कर रोज नई ऊंचाइयों को छू रहा है। 

(विनोद कुमार जी और आकाश धनगर) 

मेरी ज्वाइनिंग के बाद ही मुझे पता चला था कि श्री नवाब फाजिल सर यहां ज्वाइन कर रहे हैं। या ज्वाइन कर चुके हैं। वे ट्रेनिंग पर गए हुए थे। *नवाब सर चूंकि मेरे बॉस थे। इसलिए उनका मुझे हमेशा सपोर्ट मिला। शुक्रिया नवाब सर।* 

हमेशा से आकर्षित करते रहा है भास्कर 


मैं मूलतः जिला छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश से हूं। बचपन में जरूर नवभारत, नईदुनिया या लोकमत अखबार पढ़ें होंगे। लेकिन जबसे मीडिया से जुड़ा हूं, दैनिक भास्कर हमेशा से आकर्षित करते रहा है। जब सन 2004 में मैं भोपाल पहुंचा तो मेरा भी सपना था दैनिक भास्कर में जॉब करना। उस वक्त दैनिक भास्कर मेरे लिए बहुत दूर की बात थी। मैंने सभी संस्थानों में अपना रिज्यूमे सबमिट किया। अंत में मुझे एक अन्य अखबार में मौका मिल गया। और इस तरह मेरा भोपाल में पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ। जो कि लगभग 3 साल तक पार्ट टाइम और फुल टाइम चलता रहा। 

अमर उजाला नोएडा में थी 7 साल की पहली लंबी पारी 

(भाई मनोज व्यास और हम) 

साल 2007 में देश की राजधानी दिल्ली पहुंचा, जहां एक अन्य प्रतिष्ठित अखबार अमर उजाला दैनिक के साथ मेरी 7 साल की पारी रही। उसके बाद दूसरी सबसे लंबी पारी दैनिक भास्कर रायपुर के साथ ही थी, जो कि 16 सितंबर 2013 से लेकर 31 मार्च 2022 तक थी। 

भास्कर में ज्वाइनिंग अटक गई थी साल 2006-07 में 

(डीबी स्टार वाले संजय पाठक जी और उनकी टीम) 

भास्कर को अलविदा कहते वक्त मैं उन सभी लोगों को याद करना चाहूंगा, जिनमें तमाम वे संपादकगण और सीनियर साथी है, जो आज भास्कर में है या भास्कर छोड़ चुके हैं। जिनसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को मिला। जब 2006-07 में भास्कर भोपाल में मेरी ज्वाइनिंग की प्रक्रिया चल रही थी तब श्री श्रवर्ण गर्ग से मुलाकात हुई थी। श्री देवप्रिय अवस्थी सर से हमेशा सीखने को मिला। हालांकि उस वक्त किन्हीं कारणों से मेरी ज्वाइनिंग नहीं हो पाई थी। 

नवनीत सर से पहली मुलाकात रायपुर आफिस में हुई 

(पहले सिटी भास्कर और अब डिजिटल के स्टार सुमन पांडेय जी) 

श्री नवनीत गुर्जर सर से मेरी पहली मुलाकात श्री आनंद पांडेय जी ने रायपुर आफिस में ही करवाई थी। हालांकि सर का मैंने पहले से ही नाम सुन रखा था। भोपाल या मध्यप्रदेश में कार्यरत सभी सीनियर्स से मेरा थोड़ा या ज्यादा परिचय पहले से ही रहा है। 

(सिटी डेस्क का ये कोना अब छूट रहा है...  Goodbye) 

दैनिक भास्कर रायपुर में आने के बाद श्री आनंद पांडेय सर, श्री राजेश उपाध्याय सर, श्री शिव दुबे सर, श्री नवाब फाजिल सर, श्री यशवंत गोहिल जी और तमाम सीनियर्स और साथियों से सीखने और समझने का अवसर मिला। आप सभी का मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं. 

(भाई अभिषेक तिवारी) 

इसके अलावा और तमाम साथियों जैसे श्री निजामुद्दीन... निजाम भाई और वीरेंद्र शुक्ला जी, यशवंत गोहिल जी, निकष परमार जी, असगर भाई, ठाकुरराम यादव, मेरे दोस्त और भाई जैसे अमिताभ अरुण दुबे जी, पीलूराम साहू जी, प्रमोद साहू, सुधीर उपाध्याय, जॉन राजेश पाल सर, कौशल भाई, मनोज भाई, राकेश पांडेय जी, नीरज मिश्रा, राजीव शुक्ला जी, सतीश चंद्राकर, सुमयकर, फोटो जर्नलिस्ट भूपेश केसरवानी जी, सुधीर सागर मैथिल जी, सिटी भास्कर टीम से तन्मय अग्रवाल, मनीष, अनुराग, लक्ष्मी मैडम, रीजनल से परीक्षित त्रिपाठी जी, अभिषेक, डिजिटल टीम से श्री विश्वेश ठाकरे सर, सुमन पांडेय भाई, मिथिलेश जी और सिटी डेस्क टीम से डिजाइनर तरुण साहू, विजय जी, विनोद कुमार जी, आकाश, गौरव, डिजाइनिंग टीम से युनूस अली, विपिन पांडेय, प्रवीण, हेमंत साव, हेमंत साहू, धर्मेंद्र वर्मा, बब्बू जी तमाम साथियों का मुझे स्नेह मिला। सहयोग मिला। समर्थन मिला। 

आप सभी से मुझे जो प्यार-स्नेह और आशीर्वाद मिला है, यही मेरे जीवन की अमूल्य पूंजी है। इसे मैं ताउम्र संजोकर रखूंगा।

Wednesday, March 30, 2022

Mulaqaton ke Silsile : पूर्व वरिष्ठ रेडियो उद्घोषक अवधेश तिवारी जी से एक यादगार मुलाकात

(रेडियो के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक अवधेश तिवारी के साथ) 

पिछली छिंदवाड़ा यात्रा में 19 मार्च 2022 को इस बार श्री अवधेश तिवारी जी से मुलाकात करने का मौका मिला. अवधेश तिवारी जी से साल 2000 में पहली बार रूबरू मिलने का मौका मिला था। वैसे सन 1995 से उन्हें रेडियो पर सुना करते थे। 

आप रेडियो के जाने-माने एनाउंसर रहे हैं।

इन दिनों सेवानिवृत्त होने के बाद साहित्य साधना में लगे हुए हैं। आपसे मिलकर बेहद खुशी हुई। वे दिन भी याद आ गए। जब मैं पहली बार आकाशवाणी छिंदवाड़ा पहुंचा था। युववाणी प्रोग्राम में सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी "सात सवाल" के विजेता होने पर मुझे इंटरव्यू के लिए इनवाइट किया गया था।

और मेरा पहला इंटरव्यू 9 अगस्त 2000 को टेलीकास्ट हुआ था, जोकि श्री अवधेश तिवारी जी ने ही लिया था। उस इंटरव्यू के दौरान की यादें भी ताजा हुई। और अवधेश तिवारी जी का हमने भी वीडियो इंटरव्यू लिया, जो आप देख पाएंगे।

उन्होंने कई मुद्दों पर बातचीत की। वे लोकल भाषा पर साहित्य सृजन करते रहते हैं। इसके अलावा उन्होंने कई कविताएं भी लिखी है। कुल मिलाकर उनसे मिलकर नई बातें, विषय मिले, जिन पर मुझे आगे काम करना है।
(धर्मेंद्र पवार और मैं। अवधेश तिवारी के साथ।) 

मुलाकात में मेरे साथ थे मेरे भांजे श्री धर्मेंद्र पवार भी थे। वे भी मिलकर गदगद हो गए। आकाशवाणी छिंदवाड़ा रेडियो स्टेशन से हमेशा श्री अवधेश तिवारी जी को सुना करते थे। संभवत पहली बार उनकी रूबरू मुलाकात भी हुई...
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*मैंने तो बचपन में ही कह दिया था*
*एक दिन रेडियो में उद्घोषक बनूंगा*

*DongreJi Online* पर
मिलिए आकाशवाणी के
*जाने-माने पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक*
*श्री अवधेश तिवारी जी से।*

उनका जन्म ग्राम पिपरिया रत्ती में हुआ। उन्होंने अंडमान निकोबार द्वीप समूह से लेकर आकाशवाणी छिंदवाड़ा तक अपनी सेवाएं दी।

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आपका
🙏🙏🙏
*रामकृष्ण डोंगरे*

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Thursday, March 24, 2022

'बाबा' श्री संपतराव 'धरणीधर' : कविता में जीवन वृत्त

दस मार्च उन्नीस सौ चौबीस मोहखेड़ में जन्में थे संपतराव धरणीधर।

 इन्हें प्रोत्साहित करने वाले थे, पिता इनके श्री बापूराव उर्फ तुकड़ों जी धरणीधर। 


मात्र एक वर्ष की आयु में छोड़ गयी थी, माता इनकी अनुसुईया जी धरणीधर। 

पढ़ाई के लिए भटके थे आप, कभी मोहखेड़, कभी छिन्दवाड़ा तो कभी नागपुर। 


बी.ए. की उपाधि हासिल की थी आपने, उन्नीस सौ पैंसठ में विश्वविद्यालय सागर से।

उब्बीस सौ छियालिस, सेण्ट्रल जेल नागपुर में, 'मुझे फाँसी पे लटका दो...' गाते थे जोर-शोर से।


उल्नीस सौ छियालिस में ही मोहगांव स्कूल में, एक वर्ष अंग्रेजी शिक्षक रहे श्री धरणीधर । 

उन्नीस सौ अइतालिस से तक चौरई हाईस्कूल में, अध्यापन कार्य में लगे रहे श्री धरणीधर ।


उन्नीस सौ पचहत्तर में जुट गये थे पूर्णतः साहित्य साधना में। 

स्थानीय कलेक्ट्रेट से क्लर्क के कार्य से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर। 

बालक संपत की पहली रचना हुई थी प्रकाशित, 'बालक' श्री संतराम बी. ए. के अखबार में।

तभी से डटे हुए हैं धरणीधर, साहित्य साधना के दरबार में। 


इनका नहीं कोई घर-द्वार, फिर भी नहीं करते ये किसी से कोई तकरार |


उन्नीस सौ नब्बे दिल्ली में सम्मानित हुए थे धरणीधर, डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार से।

उन्नीस सौ चौरासी में चुने गये थे धरणीधर, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की ओर से प्रदेश के साहित्यकार में।


बीते आठ वर्षों से जिला चिकित्सालय छिन्दवाड़ा में डाले अपना डेरा पड़े हैं मझधार में। 

आज भी होती है इनकी गिनती, सतपुड़ा के महान साहित्यकार में। 


इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं, 'किस्त-किस्त जिंदगी' और 'महुआ केसर'। 

आज भी करते हैं, रचना धरणीधर, ताजा-तरीन है इनकी रचना 'अपनी मौत पर'। 


धर्म, साहित्य, कला, राजनीति, या हो कोई अन्य विषय रखते हैं ये अपने विचार, तब गर्व महसूस होता है हमें इनकी सोच पर। 

याद रखें इनको हर शख्स कहता है ये 'तृष्णा' क्योंकि इनके जैसा नहीं कोई दूसरा साहित्य जगत का मुरलीधर। 

ये है 'बाबा' हमारे श्री संपतराव धरणीधर

©® रामकृष्ण डोंगरे "तृष्णा", कला तृतीय वर्ष, डीडीसी कॉलेज, साल 2002


Friday, March 11, 2022

Transgender : समाज की नफरत का परिणाम है ट्रांसजेंडर की हरकत... जानिए आखिर पूरा सच क्या है...


( तस्वीर साभार : गूगल से) 

(हमारे ये ट्रांसजेंडर साथी समाज की नफरत का परिणाम है। जब यह पैदा होते हैं तो समाज इन्हें नफरत भरी निगाहों से देखता है। और अपने घर से समाज से अलग कर देता है। बचपन से इन्हें प्रेम नहीं मिलता और यही वजह है कि इनके अंदर धीरे धीरे नफरत का गुबार भरते रहता है। और यह गुबार, गुस्सा जब तक सोसायटी के लोगों पर ही फूटते रहता है.)

एक छोटे से वाकये के बाद आज दिल में ये बात उठी कि ट्रांसजेंडर (Transgender) के लीडर से उनकी समस्या पर बात की जाए। 

सबसे पहले तो हमसे रूबरू हुए और कंट्रोवर्सी के कारण बने दो ट्रांसजेंडर से पहली बार बात हुई। हालांकि जिस तरह की शिकायत थी। उसके बावजूद यह लोग बेहद शालीनता से पेश आएं। 

‌अब मामला यह था कि क्यों ना इनके सीनियर से बात करके इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके। 
जब इस बारे में ट्रांसजेंडर (Transgender) की भलाई के लिए काम करने वाले उनके लीडर से बात की गई तो इस समस्या का एक अलग ही पहलू सामने आया। बकौल लीडर, ये लोग हमारी बात क्यों मानेंगे। यह भी एक इंसान हैं। अगर यह कुछ गलत कर रहे हैं तो जैसा कि एक आम आदमी गलत करता है तो उसको दूसरा आम आदमी समझाए तो वह नहीं समझता।

उन्होंने भरे गले से कहा कि हम जब इन गलत प्रवृत्ति के ट्रांसजेंडर को समझाते हैं कि आप चंदा मत मांगिए तो यह लोग सबसे पहले हमसे सवाल करते हैं कि हमारा पेट कैसे भरेगा। आप हमें पहले रोजगार दीजिए। फिर हमें समझाइए। हम घर घर से मांगना बंद कर देंगे।

सवाल और जवाब दोनों ही बड़े हैं। अब असली वजह क्या है इन ट्रांसजेंडर की। 

उन्होंने बताया कि 
हमारे ये ट्रांसजेंडर साथी समाज की नफरत का परिणाम है। जब यह पैदा होते हैं तो समाज इन्हें नफरत भरी निगाहों से देखता है। और अपने घर से समाज से अलग कर देता है। बचपन से इन्हें प्रेम नहीं मिलता और यही वजह है कि इनके अंदर धीरे धीरे नफरत का गुबार भरते रहता है। और यह गुबार, गुस्सा जब तक सोसायटी के लोगों पर ही फूटते रहता है. 

हर जगह अच्छे और बुरे लोग होते हैं. ट्रांसजेंडर में भी कुछ अच्छे लोग होते हैं तो कुछ बुरे भी होते हैं. 

अब हमें मंथन करना चाहिए और समाज से अलग-थलग पड़े इन ट्रांसजेंडर को रोजगार मिले ऐसी पहल करना चाहिए. ताकि ये घर घर पैसे मांगकर लोगों को परेशान और प्रताड़ित ना करें.

©® रामकृष्ण डोंगरे की फेसबुक वॉल से, 11 मार्च 2019

Monday, March 7, 2022

Family Tree : *डोंगरे की परिवार की वंशावली... 10 पीढ़ियों का इतिहास, नारी शक्ति ही हर पीढ़ी की धुरी रही...*

📝 *वरिष्ठ पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे की कलम से*

राजा भोज के वंशज और क्षत्रिय पवार (पंवार/परमार/भोयर) समाज से ताल्लुक रखने वाले हमारे परिवार की 10 पीढ़ियां का लेखा जोखा यहां दिया जा रहा है... *कामन महाजन डोंगरे और रे बाई डोंगरे* से लेकर अब तक के सभी परिवारजनों का रिकॉर्ड मौजूद है। कहने को हमारा समाज पितृसत्तात्मक है लेकिन परिवार को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी महिलाएं ही संभालती है। ये बात अलग है कि उन्हें इसका क्रेडिट नाम नहीं मिलता।
(कांसेप्ट एंड रिसर्च : रामकृष्ण डोंगरे मोबाइल : 8103689065) 

हमारा खानदान कई पीढ़ियों से *मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ ब्लॉक में ग्राम तंसरामाल में रहता आ रहा है।* मूलतः खेती-बाड़ी ही हमारा पुस्तैनी काम रहा है। लेकिन अगर सदियों पहले की बात की जाए तो *डोंगरे खानदान की शुरुआत होती है सन 1010-1055 के कालखंड में। यानी राजा भोज के समय से। वहां पर प्रताप सिंह डोंगरे नाम के व्यक्ति थे। उन्हीं से डोंगरदिया यानी डोंगरे वंश चालू हुआ।* डोंगरे समेत तमाम गोत्र के लोग पहले सैनिक हुआ करते थे। माना जा सकता है खेती किसानी से भी जुड़े रहे होंगे। लेकिन मालवा से विस्थापित होकर मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा, बैतूल, सिवनी, बालाघाट और महाराष्ट्र के वर्धा, गोदिंया, यवतमाल समेत देशभर में जाकर बसने के बाद सभी मूल रूप से कृषि कार्य से ही जुड़ गए। 

गौरतलब है कि मालवा इलाके में धारा नगरी हुआ करती थी, जिसका वर्तमान नाम धार जिला मध्यप्रदेश है। यहां पर परमार पंवार राजाओं का राज्य था, जिसके नौवें राजा राजा भोज (सन् 1010-1055 ई.) हुए। तब से लेकर अब तक का लिखित इतिहास हमारे पास मौजूद है। 

*प्रताप सिंग डोंगरे के 2 बेटे थे, कारू सिंग और महाप्रयाग सिंग। उन्होंने मुसलमानों से खूब युद्ध किया था। कारू सिंग का बेटा नांद देव, बेटी रुपला बाई और पत्नी झमीया थी। नांददेव का बेटा सुमन सिंग था। सुमन सिंग धार के राजा राय महल देव के पास वजीर थे। जब मुसलमानों ने धार पर आक्रमण किया तो उनसे युद्ध में सुमन सिंग मारे गए। उन्होंने पवारों से कहा था कि यहां से सब छोड़कर चले जाओ। तब पवार इधर उधर जाकर बस गए।* (सुमनसिंग-जोधी) के बेटे नारूदेव, वीरदेव, गोरदेव थे। फिर नारूदेव और लखाई को गौलु सिंग, नौलु सिंग बेटे हुए। तथा गौलु सिंग को देवल्या देव पुत्र हुआ। देवल्या देव और हाराई को खोकल्या भाई, चिमना भाई, खंगू भाई, घुड़या पुत्र थे। इनका वंश देवगढ़ छिंदवाड़ा में रहे। मोतीराव भाट भी इनके साथ इधर ही आ गए थे। इनका वंश भी इधर ही है। नौलु सिंग का बेटा हिरन्या था। इनका वंश बैतूल और वर्धा में है। 

*मेरी माताजी गौरा बाई डोंगरे ने बताया कि तंसरा के सारे डोंगरे एक ही है। ईकलबिहरी में दो डोंगरे भाई थे। उनमें झगड़ा हुआ तो एक भाई भागकर तंसरा आ गया। शायद उसके ही खानदान के सारे लोग हो।*
मुझे यह बताने में गर्व महसूस होता है कि हमारा परिवार शायद कई पीढ़ियों से मातृसत्तामक ही रहा है। जहां तक मुझे जानकारी है *मेरे पिताजी स्व. श्री संपतराव डोंगरे की दादी मां यानी श्रद्धेय पूनी बाई ने अपनी पाई-पाई जमा की गई रकम से हमारी पुस्तैनी जमीन खरीदी। जहां आज हमारे परिवार रहते हैं। उसी जमीन को हमारी दादी मां ने अपने सीधे और सज्जन पति स्व. किसन डोंगरे के साथ मिलकर सजाया-संवारा। यानी मरते दम तक खेतों में बैलगाड़ी चलाने से लेकर हर तरह के काम किए।*

मेरी सबसे बड़ी प्रेरणास्त्रोत दादी (डोकरी माय) ही थीं। उनकी परंपरा को मेरी मां श्रीमती गौरा बाई और भाभी जी कैकई (चमेली) बाई आगे बढ़ा रही है।
जब भी कोई दुख की घड़ी आती है तो मेरे मुंह से "ओ मां" ही शब्द निकलते हैं। मां मेरी कमजोरी और ताकत भी है। घर से दूर रहने के कारण बरबस ही मां की याद आ जाती है, आंखों में आंसू झरने लगते हैं। लेकिन तभी मां के वे शब्द कान में गूंजने लगते हैं। बेटा- तुम दोनों भाइयों को बाहर निकलकर कुछ करना है। अपना और हमारा नाम बढ़ाना है।

शायद यही वजह है हम आज भी मुश्किलों से घबराते नहीं, जूझते है और अपने आप को संभाल लेते हैं।

मां से मिली मुझे प्रेरणा, ताकत और भरोसा 

ओ मां.... तुझे सौ सौ सलाम... 
महिला दिवस पर नारी शक्ति को सलाम। 

*( वरिष्ठ पत्रकार और ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे के द्वारा मदर्स डे पर 8 मई 2016 की लिखी मूल पोस्ट। इस पोस्ट में 8 मार्च 2022 को संशोधन किया गया है।)*

_नोट : अपने परिवार की ऐसी वंशावली (फैमिली ट्री) आप भी बना सकते है। एक तस्वीर की तरह आपके घर की दीवार में लगाने से आपके परिजनों को कई पीढ़ियों की जानकारी मिल सकेगी।_

©® *वरिष्ठ पत्रकार व ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे*
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लेआउट-डिजाइन : तरुण साहू