Tuesday, January 26, 2021

डायरी : हम आपस में मिलना-जुलना क्यों नहीं चाहते?

*हम लोग एक- दूसरे से बात क्यों नहीं करते?*

*हम आपस में मिलना-जुलना क्यों नहीं चाहते?* 

~~~*पत्रकार व ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे* ~~~ 
---मेरी डायरी के पन्नों से---

जीवन में अगर हम लोगों से मिलेंगे नहीं, बात नहीं करेंगे तो हमारे इंसान होने का क्या मतलब. हम इंसान होने की वजह से एक दूसरे के साथ अपनी फीलिंग को शेयर कर सकते हैं। लेकिन आज के दौर में हम शेयर नहीं कर रहे हैं। 

एक वह दौर था, जब हम चिट्ठी लिखा करते थे. चिट्ठी के जरिए अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाया करते थे. फिर उनके उत्तर का इंतजार करते थे. ऐसे में अगर हमारी दोस्ती हो जाती थी तो हम उनसे मिलने के लिए कई किलोमीटर का फासला तय करते थे. मैं अपनी बात करूं तो मैंने अपने मोहल्ले, गांव या स्कूल के बाहर लोगों से दोस्ती के लिए पहला माध्यम आकाशवाणी यानी रेडियो को चुना. जब हम फरमाइशी प्रोग्राम में चिट्ठी लिखा करते थे तो वहां से हम नए मित्र तलाशते थे. जिनके नाम याद रह जाते थे। उन्हें बार बार याद करते थे। इसके अलावा कार्यक्रमों की प्रतिक्रिया के पत्र पहुंचते थे, और जब लोगों के विचार हमें अच्छे लगते थे, तो हम उनकी तरफ चिट्ठी लिखकर दोस्ती का हाथ बढ़ाते थे. कई चिट्ठियों तक सिलसिला चलने के बाद मिलने का समय आता था.

एक वाकया मुझे याद आता है। ऐसे ही एक रेडियो मित्र, पेन फ्रेंड से मिलने के लिए हमने जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से तामिया के पातालकोट का 60 किमी का सफर यूं ही तय कर लिया था। बिना किसी खास वजह के। पातालकोट पहुंचने के बाद हमें पता चला कि उस मित्र का घर जंगल वाले पैदल रास्ते में कई किलोमीटर दूर है। तो बड़ी मुश्किल से हमने उसका घर खोजा। मिलते ही हमारी सारी थकान दूर हो गई। मित्र ने तुरंत हमें गरमा गरम पकौड़े खिलाएं. 

… तो एक दौर वह था। और आज जब एक मोबाइल हमारे हाथ में है और हमें "कर लो दुनिया मुट्ठी में" कहकर यह मोबाइल थमाया गया है, वाकई पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में है. हम मात्र एक क्लिक से हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर किसी भी अपने परिचित या किसी भी क्षेत्र में सक्रिय या हमारे आदर्श व्यक्ति से हम मैसेज पर बातचीत कर सकते हैं। कॉल भी कर सकते हैं। लेकिन आज के दौर में देखा जा रहा है कि हम किसी से भी दिल से बातें नहीं करना चाहते। मिलना नहीं चाहते। अगर किसी को यूं ही फोन लगा लो तो उधर से तुरंत पूछा जाता है कि कोई काम था क्या। 

ऐसे में मिलने की और रिश्ता बनाने की बात क्या करें। 
ज्यादा दूर की बात ना कि जाए तो शहरी जिंदगी में अपार्टमेंट कल्चर में हम अपने पड़ोसियों से भी करीबी रिश्ता नहीं रख पाते। इसमें कहां कमी है। इस पर हमें विचार करना चाहिए। इसके अलावा अपने दोस्तों से और रिश्तेदारों से भी हमें गाहे-बगाहे बातचीत करते रहना चाहिए। साथ ही किसी ना किसी बहाने मिलना भी चाहिए। 


~~~*आपका दोस्त रामकृष्ण डोंगरे* ~~~
---मेरी डायरी के पन्नों से/26 जनवरी, 2021---

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