Wednesday, March 16, 2016

मां को समर्पित पवारी कविता : भूखी लांघी बूढ़ी काया


भूखी लांघी बूढ़ी काया ,सुखी लकड़ी साईं माय
मुंढा प वा हाथ च फेरे कभी पाट नी फ़ेरत माय
माय सी घर घर लगय पर घर म नी सपात माय।
बुखार म बेटा तपय ते बेला सी मुरझाय माय।
मोटी ताजी काया ओकी ,बनी गाठोड़ी साईं माय।
भूखी लांघी बूढ़ी काया ,सुखी लकड़ी साईं माय।


दवा नी दारु पेज नी पानी ,कहाँ जाऊ कह रूवय माय।
लेत नी कभी दवाई माय जोड़य पाई पाई माय।
दुःख पर्वत ते राई माय हारत नी लड़ाई माय।
दुनिया म सब मैला है पर उजली उजली होय माय।
दुनिया म सब रिश्ता ठंडा ,गरमागरम रजाई माय ।
जब भी कुई रिश्ता उधड़य ते तुरपाई करय माय ।


भाऊ खान पेन ख लावय घर म बरकत लावय माय।
भाऊ लड्डू सा कड़क पन मस्का नोनी साईं माय।
भाऊ की सेवा में देखय सारा तीरथ धाम माय ।
नाम माय का सब है मिट्ठा माँ जी मैया माई माय।
तार तार लुगड़ा भया पन जोड़ जोड़ पहनय माय।
माय सी थोड़ी थोड़ी सब झन रोज चुरावय थोड़ी माय ।


घर म चूल्हा मत बाटो रे आखरी सांस तक कव्हय माय।
भाऊ जब बिमार पड़्य ते साथ-साथ मुरझावय माय ।
रूवय लुक छिप ख अक्खन पर बेटा ख दिखात नी माय/
लड़ता लड़ता सहता -सहता ,सूखी लकड़ी साईं मांय।
बेटी खुश रहे सासु घ्रर सब गहना दे आई माय।
माय सी घर,घर लगय पर घर म नी सपात माय।


बेटा की कुर्सी है ऊँची,पर ओकी ऊँचाई ते है माय।
दर्द बडो या छोटो होय ,याद हमेशा आवय माय।
घर का शगुन सब माय सी,है घर रौनक होय माय।
मुंढा प वा हाथ च फेरे कभी पाट नी फ़ेरत माय।
सब पराया हो जाय पर होत नी कभी पराई माय l


साभार - सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल

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