Sunday, March 9, 2025

भारत का "Indian YouTube Village" तुलसी गांव Tulsi Village : मीडिया ने जो बताया है, वो पूरा सच नहीं है : पार्ट:1

"समाचार को जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास" कहा जाता है। इस वाक्य से तो आप सब परिचित होंगे। आज अचानक इसकी चर्चा क्यों ? तो चलिए इस पर विस्तार से बात करते हैं। आप सभी ने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के एक गांव तुलसी (TulsiVillage) का नाम जरूर सुना होगा या अपने मोबाइल पर इससे संबंधित कोई रील देखी होगी, कोई खबर पढ़ी होगी। तो चलिए हम बात शुरू करते हैं... 
तो आज हम चर्चा करने जा रहे हैं, यूट्यूबर विलेज (youtuber village) के नाम से मशहूर हो चुके छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित ग्राम तुलसी की…. 

तो सबसे पहले आपको यहां बताना चाहेंगे कि तुलसी गांव समाचार पत्रों यानी मीडिया की सुर्खियां कब बना… 

तो पहली खबर छत्तीसगढ़ के स्थानीय न्यूज चैनल आईबीसी 24 ने 19 अगस्त, 2022 को चलाई थी. इस खबर के वेबसाइट पर अपलोड होते ही तमाम मीडिया ने भी इसको फॉलो किया। वर्ष 2023 में सबसे ज्यादा खबरें इस पर अपलोड हुई। सरकार ने अगस्त सितंबर 2023 यहां यूट्यूब का स्टूडियो बनाया। इसके चलते इस गांव की दूसरी बार खूब चर्चा होने लगी। तब हमने इस पर स्टोरी तैयार की थी। उस वक्त भी मेरी इच्छा इस गांव तक पहुंचने की थी, लेकिन किन्हीं कारणों से मैं पहुंच नहीं पाया। 
तो अब बात करते हैं आखिर पत्रकारिता को जब हम जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास कहते हैं तो पत्रकार बिरादरी से कैसे गलती हो जाती है और जब एक बार वह गलती दर्ज हो जाती है तो वह लगातार कैसे दोहराई जाती। 

4, 000 की आबादी वाले 
गांव में 1,000 यूट्यूबर... 
हर घर में एक यूट्यूबर…. 
यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। इस तथ्य को किसने लिखा? और क्यों लिखा? इस बहस में नहीं पड़ना चाहता हूं। 

यूट्यूबर का अर्थ है, वह व्यक्ति जिसका स्वयं का यूट्यूब चैनल है। जिस पर वह वीडियो अपलोड करता है। किसी एक वीडियो में काम करने वाले तमाम लोग, एक्टिंग करने वाले लोग, एडिटिंग करने वाले लोग या पूरी टीम को हम यूट्यूबर नहीं कह सकते हैं। 
तकनीकी ज्ञान या तकनीकी समझ के अभाव में यह भूल किसी प्रारंभिक पत्रकार से हो गई और इसे किसी ने सुधारने का प्रयास भी नहीं किया। और हो सकता है कि उसकी मंशा गलत ना रही हो, लेकिन जब इसे लिखा गया था तो उस पत्रकार को भी अनुमान नहीं रहा होगा कि आगे क्या होगा। आज भी इसे दोहराया जा रहा है। 

हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और वेबसाइट पर लिखा जा रहा है, ऐसा गांव, जहां हर घर में यूट्यूबर… जबकि सच्चाई कुछ और है। तो चलिए आपको रूबरू कराते हैं कि सच क्या है। 

इस गांव का सकारात्मक पक्ष यही है कि इस गांव में जब यूट्यूब क्रांति पहुंची तो इसने कई कलाकारों को नई ऊंचाइयां दी। नया प्लेटफार्म दिया और इस गांव में जन्म लेने वाली यूट्यूब क्रांति के जनक युवा साथी जय वर्मा और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मेरी 2023 से ही लगातार बात हो रही है। 9 मार्च को प्रकाशित मेरी स्टोरी में आपको इस गांव का उजला पक्ष देखने को मिल रहा होगा। 
(उस दिन गांव में बीइंग छत्तीसगढ़िया यूट्यूब चैनल के क्रिएटर ज्ञानेंद्र शुक्ला जी के साथ) 

लेकिन आज आप जानेंगे तुलसी गांव की असली कहानी, जो कि अब तक मीडिया द्वारा बताई गई कहानी से अलग है। मीडिया और सोशल मीडिया पर आज भी जो कुछ चल रहा है, वो पूरा सच नहीं है। 

तो रायपुर से 45 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के लिए जब हम 26 फरवरी 2025 को सुबह दस बजे रवाना हुए तो रास्ते में विकास ही विकास नजर आ रहा था। रायपुर रेलवे स्टेशन से जब हम पंडरी होकर बलौदाबाजार रोड पर रवाना हुए तो हमें विधानसभा चौक तक पहुंचने के बाद ज्ञात हुआ कि हमें डीपीएस स्कूल, सारागांव वाली रोड से आगे बढ़ना है। 
तुलसी गांव कोई पहुंच विहीन गांव नहीं है। तुलसी रायपुर के एक बड़े इंडस्ट्रियल हब, तिल्दा इंडस्ट्रियल एरिया से लगा हुआ गांव है। तुलसी और तिल्दा के बीच एक से दो किलोमीटर का फासला होगा। तुलसी तक पहुंचने में हमें रास्ते में दोंदे खुर्द, मटिया, पचेड़ा, तर्रा आदि गांव मिले। मूरा गांव से लेफ्ट लेकर हमने तुलसी गांव का शॉर्टकट और संकरा रोड पकड़ा। आगे हमें बंगोली गांव, अडानी का पावर प्लांट, चिचोली और छतौड़ आदि गांव मिले। मुरा गांव पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा का गांव है। उनके पिता लखन लाल मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। गांव में उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है। 
तुलसी तक हम लोग पहुंचे। रास्ते में जैसा ऊपर मैंने बताया कि अडानी का पावर प्लांट, कई और फैक्ट्री और राइस मिल के हमें दर्शन हो गए। जब तक मैं तुलसी नहीं पहुंचा था, मेरे मन में यही कल्पना थी कि शायद तुलसी गांव रोड से अंदर और चमक दमक से दूर होगा।

 24 फरवरी 2025 को सुबह लगभग 11 बजे वहां पहुंचने पर सच्चाई सामने आई। तुलसी गांव सुशिक्षित और संपन्न लोगों का गांव है। जैसा कि आसपास इंडस्ट्रियल एरिया है तो वहां के कर्मचारी भी बड़ी संख्या भी तुलसी और तिल्दा में निवास करते हैं। 
तुलसी में कॉलेज भी है और आईटीआई भी है। जब हम एक स्टोरी को कवर करने जाते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट करने जाते हैं तो हमें अपने सोर्स को लाइनअप करके रखना पड़ता है। अब हम इस कहानी के असली किरदारों और अन्य लोगों की बात करते हैं। जैसा कि पूर्व में बता चुका हूं कि तुलसी गांव में यूट्यूब क्रांति के जनक जय वर्मा जी और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मैं लगातार बातचीत कर रहा था। उन्होंने मुझे इस ओर इशारा भी किया था कि तुलसी गांव को मीडिया ने “पीपली लाइव” में तब्दील कर दिया था। तब से गांव के लोग मीडिया से दूरी बनाने लगे हैं और वे बात करने के लिए आगे नहीं आएंगे। 

लेकिन क्योंकि हमें असाइनमेंट मिला था, इसलिए हमारा ग्राउंड पर जाना आवश्यक था। जब हम गांव में दाखिल हो गए तो हम सीधे पंचायत भवन पहुंचे । 

दूसरी कड़ी में आपको पूरी जानकारी…. इंतजार कीजिएगा जरूर। तब तक के लिए अलविदा….

रामकृष्ण डोंगरे
वरिष्ठ पत्रकार और ब्लॉगर 

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Tuesday, February 4, 2025

75वीं जयंती : मेरे पिता की यादों का खजाना


आज ही के दिन (चार फरवरी 1950), जब सूरज ने अपनी पहली किरणें फैलाईं, मेरे पिताजी का जन्म हुआ था। यदि वे आज हमारे बीच होते, तो 75 वसंत देख चुके होते। 

मेरे पिताजी, श्री संपतराव डोंगरे, अब हमारे बीच नहीं हैं; वर्ष 2006 में हृदयाघात ने उन्हें हमसे छीन लिया।

एक किसान के बेटे, ईमानदारी की मूर्ति, जिन्होंने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी की थी, लेकिन समाज और रिश्तेदारों की आलोचना की आँधी में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 

यदि मैं अपने आप से पूछूँ कि मैं अपने पिता को कैसे याद करता हूँ, तो मुझे कई घटनाएँ याद आती हैं, पर कुछ विशेष क्षण हैं जो मेरे दिल में गहरे उतरे हैं। 

पहली कहानी है-

जब मैं बहुत छोटा था, स्कूल में पढ़ता था। स्कूल की फीस के लिए जब मुझे कुछ रुपए चाहिए होते थे, तो मैं पिताजी की जेब से रुपये लेता और एक पर्ची पर लिख देता कि "पिताजी, मुझे स्कूल की फीस के लिए इतने रुपए लेने पड़े।"

एक दिन, स्कूल से लौटते हुए, मैंने उन्हें मेरे गांव तंसरामाल के पान ठेले पर बैठे पाया। वह अपने मित्रों को बता रहे थे, "मेरा बेटा कितना ईमानदार है, जब वह मेरी जेब से पैसे निकालता है तो कागज पर लिखकर रखता है कि कितने रुपए निकाले और क्यों।"

यह किस्सा मेरे मन में हमेशा के लिए अंकित है। 

एक और स्मृति है - - -

जब हम सभी भाई और मोहल्ले के बच्चे, टीवी देखने के लिए लगभग आधा किलोमीटर दूर जाते थे। वह दौर था, जब टीवी पर रामायण और महाभारत का प्रसारण होता था, और हमारे मोहल्ले में नया-नया टीवी आया था।

हम न सिर्फ इन सीरियलों को, बल्कि चित्रहार और अन्य सामान्य टीवी धारावाहिक भी देखते थे।

एक रात, मूवी देखकर लौटते समय, अंधेरे में एक बड़े लड़के ने हमें डराया, जिससे मेरे बड़े भाई को गहरा सदमा लगा। वे रात में बार-बार उठ जाते और रोने लगते थे। 

अगले दिन, पिताजी ने छिंदवाड़ा से एक नया टीवी लाकर हमारे घर को खुशियों से भर दिया। 

फिर वह दिन याद आता है-

जब मैं भोपाल में काम और पढ़ाई कर रहा था। मुझे एक मोबाइल खरीदने के लिए 4000 रुपए चाहिए थे, लेकिन मेरे पास न तो बैंक खाता था और न ही एटीएम कार्ड।

पिताजी गांव से छिंदवाड़ा और फिर ट्रेन में बैठकर भोपाल आए, पूरी रात जागकर, ताकि उनके पास के पैसे चोरी न हों।

जब वे मेरे छोटे से कमरे में पहुंचे, तो मैंने उन्हें टिफिन का खाना खिलाया। इस दौरान उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई, जो मुझे आज भी रुला देती है। 😭😭😭

1998 में जब मैंने गांव छोड़ा, तब से मेरा मन पैतृक ग्राम तंसरामाल, उमरानाला और छिंदवाड़ा शहर की यादों में डूबा रहता है।

गांव से आते समय, दादी ने पूछा था,

 "क्या तुम वापस नहीं आओगे?"

मां ने हमें सिखाया था कि अपना भविष्य बनाने के लिए बाहर जाना जरूरी है, और हम उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़ते गए। 

मुझे इस बात का दुख है कि मैं अपने पिता को अधिक वक्त नहीं दे पाया, और 2006 के उस मनहूस दिन, 15 नवंबर को, उन्हें हार्ट अटैक आया और वे हमेशा के लिए हमें छोड़कर चल बसे।

तब वे केवल 56 वर्ष के थे।

मैं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में पढ़ रहा था, जब मुझे उनकी तबीयत की खबर मिली।

मैं भोपाल से पिपरिया तक ट्रेन से, फिर बस से छिंदवाड़ा पहुंचा, और अंत में गांव। उन्हें देखकर मेरा दिल टूट गया, और मैं दहाड़ मारकर रो पड़ा। 

एक बच्चे के लिए, पिता का साथ छूटना बहुत दुखद होता है, खासकर जब वह सुख न दे पाए।

पिता के बारे में बातें, यादें और कहानियां तो बहुत हैं, लेकिन उनकी कोई विशेष सीख मुझे याद नहीं आती। भारतीय परिवारों में पिता और बच्चों के बीच संवाद कम होता है, जबकि मां से गहरा जुड़ाव रहता है। माँ की बातें सदा याद रहती हैं, पर मेरे लिए, मेरे पिता भगवान के समान थे।

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Friday, January 31, 2025

आज की कविता : केवल स्वयं को ढूंढना 👁️‍🗨️👁️‍🗨️ है, बाकी सब तो गूगल पर है

केवल स्वयं को ढूंढना 👁️‍🗨️👁️‍🗨️ है
बाकी सब तो गूगल पर है !
जीवन की खोज में, स्वयं को ढूंढना है,
बाकी सब तो गूगल पर है!

समय की बहती नदी में,
अपनी पहचान का मोती ढूंढना है,
भीतर छिपा हुआ सत्य,
जिसे न तो कोई एल्गोरिदम,
न ही कोई सॉफ्टवेयर पढ़ सकता है।

गूगल पर हैं सारे जवाब,
पर अपने प्रश्न का सच्चा आधार कहाँ?
हृदय की गहराइयों में,
अपने सपनों का आलम ढूंढना है।

खोया हुआ आत्मा जब लौटे,
तब समझ आएगी स्वयं की खोज की महिमा,
आभासी दुनिया के भ्रम में न खो जाए,
असली खजाना तो अंदर ही छिपा है।

तो आओ, स्वयं को ढूंढें,
बाकी सब तो गूगल पर है!

©® content creator #dongrejionline ~~रामकृष्ण डोंगरे

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Tuesday, August 27, 2024

नईदुनिया में दूसरी पारी : इनपुट एडिटर की जिम्मेदारी, चुनाव में ग्राउंड रिपोर्ट से लेकर विशेष खबरों का प्रकाशन

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 9 वर्षों तक मैंने सफलतापूर्वक दैनिक भास्कर में काम किया. 1 अप्रैल 2022 से मुझे दैनिक जागरण समूह के नईदुनिया समाचार पत्र में इनपुट एडिटर की जिम्मेदारी सौंपी गई। 
यहां रायपुर यूनिट के 19 जिलों के ब्यूरो प्रभारियों, जिला प्रतिनिधि और संवाद सूत्र साथियों के साथ इनपुट के लिए समन्वय बनाने का दायित्व मुझे सौंपा गया। 
यहां मुझे रायपुर यूनिट के बस्तर संभाग, रायपुर और दुर्ग संभाग के उन सभी जिलों की वे खबरें, जो नेशनल स्तर पर प्रकाशित हो सकती है, उन्हें तैयार करना होता था।

जागरण विशेष, नईदुनिया विशेष कैटेगरी में कई खबरें हमारे यूनिट से प्रकाशित हुई. 
इसके साथ ही विधानसभा चुनाव 2023 और इस लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ चुनाव डेस्क पर काम करते हुए हमने अलग-अलग सेगमेंट की खबरें तैयार करवाई.

इसके साथ ही हमने बस्तर संभाग में दोनों चुनाव के दौरान ग्राउंड रिपोर्ट की। साथ ही वहां से विशेष स्टोरी भी निकाली गई। चुनाव के दौरान विश्लेषणात्मक समाचार भी प्रकाशित किए गए। कई खबरें चर्चित रही, जो यहां दी जा रही है। 

Monday, December 12, 2022

Rachna Dairy : मेरी कविता - खबरों का नशा

| मेरी कविता - खबरों का नशा |

खबरों में भी, 
नशा होता है।
कुछ खबरों को पढ़ने
से नशा हो जाता है।

लेकिन उस नशे से कुछ नहीं मिलता।
ऐसी नशीली खबरों की संख्या बढ़ रही है,
बढ़ाई जा रही है
ताकि आप पर इसका नशा
एक बार चढ़ जाए तो उतरे ना।
ऐसी नशीली खबरों से बचें।

नशा कीजिए
अच्छी खबरों का, 
जिससे आपको कुछ हासिल हो।
ज्ञान मिले, प्रेरणा मिले, 
आनंद मिले, मन को शांति मिले।

बुरी खबरों की
दुनिया से दूर रहे।
क्योंकि खबरों में भी
नशा होता है।

©® *रामकृष्ण डोंगरे Ramkrishna Dongre Pawar तृष्णा*

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Sunday, December 11, 2022

Naidunia Raipur : नईदुनिया, नवदुनिया और जागरण के देशभर के संस्करणों में प्रकाशित - मेरा हौसला बड़ा है... स्टोरी

लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक जागरण, नईदुनिया, नवदुनिया के देशभर में प्रकाशित संस्करणों में आज मेरी स्टोरी 'मेरा हौसला बड़ा है'... प्रकाशित हुई है।

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अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस विशेष इस स्टोरी में मैंने देशभर की महिला पर्वतारोहियों से बात की है। इनमें हरियाणा की आदरणीय संतोष यादव, झारखंड की प्रेमलता अग्रवाल, उत्तर प्रदेश की अरुणिमा सिन्हा, मध्यप्रदेश की बेटियों मेघा परमार, भावना डेहरिया (छिंदवाड़ा), हरियाणा की शिवांगी पाठक, छत्तीसगढ़ की अंकिता गुप्ता शामिल है।

सभी से बात करके अहसास हुआ कि पुरुषों के लिए माने जाने वाले इस फील्ड में महिलाओं ने किस तरह अपना वर्चस्व कायम किया है। अपनी पहचान बनाने के लिए लालायित महिलाओं में ऐसा जुनून होता है, जो पर्वत को भी डिगा देता है। किसी ने 16 साल की उम्र में, किसी ने 48 साल की उम्र में तो किसी ने एक पैर नहीं होने के बावजूद दुनिया की ऊंची ऊंची चोटियों पर देश का तिरंगा लहराया है। 

कहते है ना कि... 
मंजिलें क्या है, रास्ता क्या है, 
हौसला हो तो फासला क्या है...
(आलोक श्रीवास्तव जी का शेर) 

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 Via  Dainik Jagran App.

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Wednesday, November 23, 2022

दिल्ली- नोएडा डायरी 2022 : आदरणीय देवप्रिय अवस्थी Devpriya Awasthi सर से आत्मीय मुलाकात ...

पत्रकारिता के वरिष्‍ठजनों से मुलाकात के क्रम में मैंने परम आदरणीय श्री देवप्रिय अवस्‍थी सर से मुलाकात की। अवस्‍थी सर से मेरी पहली मुलाकात साल 2006-07 में दैनिक भास्‍कर भोपाल में हुई थी, जब मैं माखनलाल यूनिवर्सिटी की ओर से लिखित परीक्षा देने गया था। यहां टेस्‍ट हमारा श्री अरुण आदित्‍य Arun Aditya सर ने लिया था। टेस्‍ट पास करने के बावजूद किन्‍हीं कारणों से हमारी ज्‍वाइनिंग अटक गई। इस बीच मई, 2007 मैंने अमर उजाला नोएडा ज्‍वाइन कर लिया। अगले साल ही अवस्‍थी सर भी बतौर एग्‍जीक्‍युटिव एडिटर अमर उजाला नोएडा में आ गए।

लगभग पांच-छह वर्ष तक यहां सर से सीखने का मौका मिला। वे कभी डांटते नहीं थे। भाषायी, वाक्य रचना संबंधी त्रुटियों को इस तरह समझाते थे कि एक बार जानने के बाद आप कभी  दोबारा वह गलती नहीं दोहराएंगे। मुझे याद है कि वे भाषीय त्रुटियों पर पैनी नजर रखते थे और संपादकीय सहयोगियों को समझाते थे कि ऐसा नहीं, ऐसा लिखना चाहिए। उन्‍होंने मुझे पहली बार बताया था कि अगर आप वाक्‍य में कामा लगाकर लिखेंगे तो जिससे, जिसमें लिखा जाएगा। अगर आप फुल स्‍टॉप लगाकर नया वाक्‍य बना रहे हो तो आपको इससे, इसमें लिखकर अपनी बात आगे बढ़ाना चाहिए।
पत्रकारिता या जीवन में इंसान सारी उम्र सीखता रहता है। अलग-अलग तरह की गलतियां हर कोई करता है लेकिन आपकी किसी गलती की तरफ जब कोई ध्‍यान दिलाता है तो आपका कर्तव्‍य बनता है कि दोबारा वह गलती आप न दोहराए। जैसे- भोपाल में मेरे पहले पत्रकारिता संस्‍थान दैनिक समाचार पत्र स्‍वदेश में साल 2004 में बताया गया था कि जब एक्‍शन की बात होगी तो हम कार्रवाई लिखते है लेकिन जब बात प्रोसिडिंग की आती है तो हम कार्यवाही लिखेंगे। अवस्‍थी सर ने दैनिक भास्‍कर और अमर उजाला सभी जगह शब्‍दावली और वर्तनी पर काफी काम किया था।

आदरणीय अवस्‍थी सर के पत्रकारीय सफर की बात करें तो उन्‍होंने 1976 में दैनिक जागरण से शुरुआत की थी। 1979 में नवभारत टाइम्स,दिल्‍ली आए. फिर  1983 से श्री प्रभाष जोशी जी के सान्निध्‍य में जनसत्ता में काम किया. वे जनसत्ता, दिल्ली के न्यूज रूम की धूरी तो रहे ही. उसके चंडीगढ़ और मुंबई संस्करणों के पहले समाचार संपादक भी रहे. सर चार दशक से ज्‍यादा समय तक पत्रकारिता में सक्रिय रहे। आपने दैनिक भास्‍कर. रायपुर में भी एक साल तक स्थानीय संपादक के रूप में जिम्‍मेदारी संभाली।  भास्कर समूह की भास्कर समाचार सेवा (सेंट्रल डेस्क) की शुरुआत भी उन्होंने ही की.  नईदुनिया, चौथा संसार और राजस्‍थान पत्रिका में भी अपनी सेवाएं दी। 
इन दिनों आप गाजियाबाद में रहकर परिवार के साथ वक्‍त बिता रहे हैं। आप सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते थे। समसामयिक मुद्दों पर बिना किसी संकोच के अपनी राय जाहिर करते हैं। आपके सोशल मीडिया अकाउंट से जुड़कर कई युवा पत्रकारों को हमेशा कुछ नया सीखने और समझने को मिलता है। अवस्‍थी सर ने बताया कि दैनिक भास्‍कर समूह ने नए पत्रकारों के प्रशिक्षण के लिए भोपाल में भास्कर पत्रकारिता अकादमी खोली थी. शुरुआत में उसकी जिम्मेदारी भी उनके पास थी. पहले बैच के 18 प्रशिक्षुओं में से लगभग आधे में  लोग उच्‍च पदों पर कार्यरत हैं। उन्‍होंने कहा कि पत्रकारिता के कालेजों, विश्वविद्यालयो से निकले वही लोग सफल होते है, जिनका इस पेशे के प्रति अतिरिक्‍त लगाव होता है। बाकी लोग ऐसे शिक्षा संस्‍थानों से पढ़कर पत्रकारिता में सफल हो जाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। उनका मानना है कि मीडिया संस्‍थानों को ही पत्रकारों की नई पीढ़ी तैयार करने की पहल करना चाहिए।

लगभग एक दशक के बाद आदरणीय अवस्‍थी सर से मुलाकात हुई। हालांकि इस दौरान मोबाइल पर संपर्क बना हुआ था। सर स्‍वस्‍थ हैं और कुशलतापूर्वक जीवन बिता रहे हैं। ईश्‍वर से कामना है कि आपको हमेशा यूं ही बनाए रखें। ईश्‍वर ने चाहा तो जल्‍द ही मिलने का अवसर मिलेगा।

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