"समाचार को जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास" कहा जाता है। इस वाक्य से तो आप सब परिचित होंगे। आज अचानक इसकी चर्चा क्यों ? तो चलिए इस पर विस्तार से बात करते हैं। आप सभी ने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के एक गांव तुलसी (TulsiVillage) का नाम जरूर सुना होगा या अपने मोबाइल पर इससे संबंधित कोई रील देखी होगी, कोई खबर पढ़ी होगी। तो चलिए हम बात शुरू करते हैं...
तो आज हम चर्चा करने जा रहे हैं, यूट्यूबर विलेज (youtuber village) के नाम से मशहूर हो चुके छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित ग्राम तुलसी की….
तो सबसे पहले आपको यहां बताना चाहेंगे कि तुलसी गांव समाचार पत्रों यानी मीडिया की सुर्खियां कब बना…
तो पहली खबर छत्तीसगढ़ के स्थानीय न्यूज चैनल आईबीसी 24 ने 19 अगस्त, 2022 को चलाई थी. इस खबर के वेबसाइट पर अपलोड होते ही तमाम मीडिया ने भी इसको फॉलो किया। वर्ष 2023 में सबसे ज्यादा खबरें इस पर अपलोड हुई। सरकार ने अगस्त सितंबर 2023 यहां यूट्यूब का स्टूडियो बनाया। इसके चलते इस गांव की दूसरी बार खूब चर्चा होने लगी। तब हमने इस पर स्टोरी तैयार की थी। उस वक्त भी मेरी इच्छा इस गांव तक पहुंचने की थी, लेकिन किन्हीं कारणों से मैं पहुंच नहीं पाया।
तो अब बात करते हैं आखिर पत्रकारिता को जब हम जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास कहते हैं तो पत्रकार बिरादरी से कैसे गलती हो जाती है और जब एक बार वह गलती दर्ज हो जाती है तो वह लगातार कैसे दोहराई जाती।
4, 000 की आबादी वाले
गांव में 1,000 यूट्यूबर...
हर घर में एक यूट्यूबर….
यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। इस तथ्य को किसने लिखा? और क्यों लिखा? इस बहस में नहीं पड़ना चाहता हूं।
यूट्यूबर का अर्थ है, वह व्यक्ति जिसका स्वयं का यूट्यूब चैनल है। जिस पर वह वीडियो अपलोड करता है। किसी एक वीडियो में काम करने वाले तमाम लोग, एक्टिंग करने वाले लोग, एडिटिंग करने वाले लोग या पूरी टीम को हम यूट्यूबर नहीं कह सकते हैं।
तकनीकी ज्ञान या तकनीकी समझ के अभाव में यह भूल किसी प्रारंभिक पत्रकार से हो गई और इसे किसी ने सुधारने का प्रयास भी नहीं किया। और हो सकता है कि उसकी मंशा गलत ना रही हो, लेकिन जब इसे लिखा गया था तो उस पत्रकार को भी अनुमान नहीं रहा होगा कि आगे क्या होगा। आज भी इसे दोहराया जा रहा है।
हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और वेबसाइट पर लिखा जा रहा है, ऐसा गांव, जहां हर घर में यूट्यूबर… जबकि सच्चाई कुछ और है। तो चलिए आपको रूबरू कराते हैं कि सच क्या है।
इस गांव का सकारात्मक पक्ष यही है कि इस गांव में जब यूट्यूब क्रांति पहुंची तो इसने कई कलाकारों को नई ऊंचाइयां दी। नया प्लेटफार्म दिया और इस गांव में जन्म लेने वाली यूट्यूब क्रांति के जनक युवा साथी जय वर्मा और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मेरी 2023 से ही लगातार बात हो रही है। 9 मार्च को प्रकाशित मेरी स्टोरी में आपको इस गांव का उजला पक्ष देखने को मिल रहा होगा।
लेकिन आज आप जानेंगे तुलसी गांव की असली कहानी, जो कि अब तक मीडिया द्वारा बताई गई कहानी से अलग है। मीडिया और सोशल मीडिया पर आज भी जो कुछ चल रहा है, वो पूरा सच नहीं है।
तो रायपुर से 45 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के लिए जब हम 26 फरवरी 2025 को सुबह दस बजे रवाना हुए तो रास्ते में विकास ही विकास नजर आ रहा था। रायपुर रेलवे स्टेशन से जब हम पंडरी होकर बलौदाबाजार रोड पर रवाना हुए तो हमें विधानसभा चौक तक पहुंचने के बाद ज्ञात हुआ कि हमें डीपीएस स्कूल, सारागांव वाली रोड से आगे बढ़ना है।
तुलसी गांव कोई पहुंच विहीन गांव नहीं है। तुलसी रायपुर के एक बड़े इंडस्ट्रियल हब, तिल्दा इंडस्ट्रियल एरिया से लगा हुआ गांव है। तुलसी और तिल्दा के बीच एक से दो किलोमीटर का फासला होगा। तुलसी तक पहुंचने में हमें रास्ते में दोंदे खुर्द, मटिया, पचेड़ा, तर्रा आदि गांव मिले। मूरा गांव से लेफ्ट लेकर हमने तुलसी गांव का शॉर्टकट और संकरा रोड पकड़ा। आगे हमें बंगोली गांव, अडानी का पावर प्लांट, चिचोली और छतौड़ आदि गांव मिले। मुरा गांव पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा का गांव है। उनके पिता लखन लाल मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। गांव में उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है।
तुलसी तक हम लोग पहुंचे। रास्ते में जैसा ऊपर मैंने बताया कि अडानी का पावर प्लांट, कई और फैक्ट्री और राइस मिल के हमें दर्शन हो गए। जब तक मैं तुलसी नहीं पहुंचा था, मेरे मन में यही कल्पना थी कि शायद तुलसी गांव रोड से अंदर और चमक दमक से दूर होगा।
24 फरवरी 2025 को सुबह लगभग 11 बजे वहां पहुंचने पर सच्चाई सामने आई। तुलसी गांव सुशिक्षित और संपन्न लोगों का गांव है। जैसा कि आसपास इंडस्ट्रियल एरिया है तो वहां के कर्मचारी भी बड़ी संख्या भी तुलसी और तिल्दा में निवास करते हैं।
तुलसी में कॉलेज भी है और आईटीआई भी है। जब हम एक स्टोरी को कवर करने जाते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट करने जाते हैं तो हमें अपने सोर्स को लाइनअप करके रखना पड़ता है। अब हम इस कहानी के असली किरदारों और अन्य लोगों की बात करते हैं। जैसा कि पूर्व में बता चुका हूं कि तुलसी गांव में यूट्यूब क्रांति के जनक जय वर्मा जी और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मैं लगातार बातचीत कर रहा था। उन्होंने मुझे इस ओर इशारा भी किया था कि तुलसी गांव को मीडिया ने “पीपली लाइव” में तब्दील कर दिया था। तब से गांव के लोग मीडिया से दूरी बनाने लगे हैं और वे बात करने के लिए आगे नहीं आएंगे।
लेकिन क्योंकि हमें असाइनमेंट मिला था, इसलिए हमारा ग्राउंड पर जाना आवश्यक था। जब हम गांव में दाखिल हो गए तो हम सीधे पंचायत भवन पहुंचे ।
दूसरी कड़ी में आपको पूरी जानकारी…. इंतजार कीजिएगा जरूर। तब तक के लिए अलविदा….
रामकृष्ण डोंगरे
वरिष्ठ पत्रकार और ब्लॉगर
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