Friday, September 12, 2014

छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार- पहली किश्त

इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का बाशिंदा हूं। यहां मैं राज्य के कुछ चर्चित लेखक और कवियों का उल्लेख कर रहा हूं। भारतेंदु मंडल के अग्रगण्य सदस्य ठाकुर जगमोहन सिंह की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही थी। पद्यश्री पं. मुकुटधर पांडेय को प्रदेश का प्रथम मनीषी कहा जाता है। उन्हें छायावाद का प्रवर्तक भी माना जाता है। पदुमलाल पन्नालाल बख्शी को छत्तीसगढ़ का श्लाका पुरुष कहा जाता है। उनकी रचना झलमला हिंदी की पहली लघुकथा मानी जाती है। उन्होंने सरस्वती जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका का संपादन किया था। हिंदी की पहली कहानी टोकरी भर मिट्टी के लेखक माधवराव सप्रे भी इसी धरती पर पैदा हुए थे। 
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गजानन माधव मुक्तिबोध को न केवल छत्तीसगढ़ अपितु सारा देश कभी भी नहीं भूल सकता। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार थे। वे हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केंद्र में रहने वाले कवि रहे। वे कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी विश्व प्रसिद्ध कृतियां हैं- चांद का मुंह टेढा़ है, अंधेरे में, एक साहित्यिक की डायरी। उनके बेटे दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार है। वे लंबे समय से कई अखबारों के साथ जुड़े रहे हैं। वे वर्तमान में दैनिक अमन-पथ में संपादक है। उनकी दो किताबें प्रकाशित हुई- ‘इस राह को गुजरते हुए’ और ‘36 का चौसर’।

हिंदी के आधुनिक काल में श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित कवि की छवि रखते हैं, जिनकी प्रमुख कृतियां- माया दर्पण, दिनारम्भ, छायालोक, संवाद, झाठी, जिरह, प्रसंग, अपोलो का रथ आदि हैं।
श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 नवंबर 1931 को बिलासपुर में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। आपने दिल्ली में कई पत्र पत्रिकाओं में लगभग एक दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य किया। 1966 से 1977 तक वे दिनमान के विशेष संवाददाता रहे। वर्मा जी राजनीति से भी जुड़े थे तथा लोकसभा के सदस्य भी रहे।
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स्त्रोत-  विकीपीडिया

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