Friday, June 18, 2021

फेसबुक पोस्ट : 90 के दशक की स्कूल लाइफ, कॉपियां और पेन

आपने स्कूल में किस कॉपी में लिखा था?...

सरकारी राशन दुकान में
मिट्टी तेल और शक्कर ही नहीं
कॉपियां भी मिलती थी...

90 के दशक के स्कूल की कॉपियां...
आकाशवाणी अभ्यास पुस्तिका, अनुपम सुपर डीलक्स...

बचपन में नई कॉपी और नई किताबें मिलने पर जो खुशी मिलती थी। उसे बयां नहीं किया जा सकता।

बार-बार देखते थे। उलटते-पलटते थे। नई पुस्तक और कॉपी जिस दिन आती थी, उस दिन तो मजे ही मजे रहते थे। तस्वीर में नजर आ रही नर्मदा नाम की कॉपी तो 90 के दशक में सरकारी राशन की दुकान से मिला करती थी। रियायती दरों पर।

आज के बच्चे इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि उन्हें सरकारी राशन दुकान से कॉपी मिल सकती है.

इसके अलावा आकाशवाणी अभ्यास पुस्तिका, अनुपम सुपर डीलक्स, जनता सुपर, हवा महल इन कॉपियों में भी हमने (1985-1998 तक) प्राइमरी स्कूल, मिडिल स्कूल से लेकर हाईस्कूल तक लिखा है।

ऐसी यादें वाकई हमें बचपन की सैर करा जाती है।

शुरुआत में स्याही वाले (फाउंटेन) पेन से लिखना और निब का खराब हो जाना। निब को बाल डालकर साफ करना। निब का टूट जाना। एक दूसरे के ऊपर स्याही छिड़क देना। फिर झगड़ना। इसी स्याही वाले पेन से लिखने में अंगुली दुखने लगती थी। निशान बन जाता था। 

फिर आता है बॉल पेन का जमाना। रोटोमैक, रेनॉल्ड्स, ग्रिफ वाला सेलो का पेन, जेटर पेन, पाइलेट पेन, चार-पांच रिफिल वाले मल्टी कलर चेंजिंग पेन। हरा, पीला, नीला, लाल कलर वाले। जिनसे टिकटॉक जैसी आवाज आती थी। एक पेन में ही अलग, अलग कलर की रिफिल से लिखने का मजा ही कुछ और होता था। 

©® *रामकृष्ण डोंगरे*, ब्लॉगर और पत्रकार 

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Thursday, June 17, 2021

फेसबुक पोस्ट : खेती किसानी की यादें ताजा हो गई...

पहली बार चौथी क्लास में यानी 32 साल पहले बख्खर मारा था।

लास्ट टाइम करीब 25 साल पहले बख्खर, नागर, तिफन, डौरा चलाया था। कॉलेज पढ़ने के लिए 1998 में छिंदवाड़ा चला गया था। तब से ये सब छूट गया था। कभी-कभी हाथ लगाया होगा। 

आज करीब आधे घंटे तक खेत में बख्खर मारा। लगा ही नहीं कि इतने सालों से हल, बख्खर से दूर हो गया था।

बख्खर मारने में क्या क्या परेशानी आती है। वो भी याद आ गई। जैसे - बैल का इधर उधर मुंह मारना, मुस्का उतार लेना, पास में चारा फंसने से ठीक से बखराई नहीं होना, कई बार बैल ज्वांडा निकाल देता है आदि कई परेशानी आती है। कई बार बैल चलते नहीं है तो उन्हें पिराना या छड़ी से मारना पड़ता है। कई बार हंकनी से कोंचना पड़ता है।

खेत बखरना, हल चलाना, डौरा मारना धैर्य का काम है। खेत बहुत दिखता है। एक - दो एकड़ मगर धैर्य के साथ काम करते जाओ तो काम थोड़ा कम होने लगता है। जब पूरा खेत बखरा जाता है तो उसकी खुशी अलग ही होती है।

और जब खेत में अनाज, दाना बोने के बाद फसल उगती है तो खुशी चार गुना बढ़ जाती है। रोज सुबह जल्दी उठकर खेत में जाना। मूंगफली, गेहूं, सोयाबीन, मक्का को उगते देखना अलग ही आनंद देता है।

खेती करना हर किसान के बेटे को अच्छा लगता है। लेकिन जब उसका रिजल्ट अच्छा नहीं मिलता। तो माता-पिता खुद ही अपने बच्चों को खेती किसानी से दूर करने लगते है और शहर में दो टके की नौकरी करने भेज देते है। क्या किया जा सकता है?

©® *ब्लॉगर और पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे*

#खेती_किसानी #बख्खर #हल #तिफन

Tuesday, June 15, 2021

*50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च ऑफर पाने वाले इंजीनियरिंग के छात्र को स्पांसरशिप की तलाश*

*विलक्षण प्रतिभा पर आर्थिक ग्रहण : इंजीनियरिंग के इस मेधावी छात्र को स्पांसरशिप की तलाश*

New Delhi: 
 
राहे अमल में जज्बए, कामिल हो जिनके साथ, खुद उनको ढूंढ लेती है मंजिल कभी कभी।। ऐसे दौर में जब समूचा विश्व कोरोना जैसी महामारी से पार पाने के लिए संघर्षरत है, मैकेनिकल इंजीनियरिंग के 21 वर्षीय छात्र अभिषेक अग्रहरी ने प्रतिकूल परिस्थितियों को मात देते हुए अपनी उम्र से भी अधिक अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत 18 देशों के 55 प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से शोध से जुड़े कई रिसर्च ऑफर हासिल किये हैं। इंजीनियरिंग के अलावा उन्हें कई देशों के प्रतिष्ठित संस्थानों से गणित के क्षेत्र में भी शोध का प्रस्ताव मिला है। उनकी नज़रें अब देश के लिए ‘‘फ़ील्ड्स मेडल’’ और ‘‘नोबेल’’ लाने पर टिकी हैं और इसी दिशा में उनका सारा प्रयास समर्पित है।

अग्रहरी ने कहा, “विज्ञान और गणित के क्षेत्र में पूरे इतिहास में किसी को भी दोनों - नोबेल और फील्ड्स मेडल नहीं मिला है। केवल 4 वैज्ञानिकों - जे बार्डीन, एम क्यूरी, एल पॉलिंग और एफ सेंगर को 2 नोबेल पुरस्कार मिले हैं। शोधकर्ताओं को टोपोलॉजी के क्षेत्र में भी फील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया है। ब्लैकहोल्स फिजिक्स में रोजर पेनरोज़ और दो अन्य को 2020 में नोबेल दिया गया। इसलिए, मेरे शोध के क्षेत्र में पेनरोज़ डायग्राम्स का अत्यधिक उपयोग होता है”।

इतना ही नहीं, उन्हें आईआईटी जैसे भारत के उच्च तकनीकी शिक्षा संस्थानों से भी जुड़ने का मौका मिला है।

लॉकडाउन और कोरोना संकटकाल के बीच भी अपनी रिसर्च में जुटे रहे अभिषेक अग्रहरी को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड इंग्लैंड, सीएनआरएस फ्रांस, पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका, इलिनाय विश्वविद्यालय अमेरिका, टेक्नीसीक यूनिवर्सिट म्यूनिख जर्मनी, तेल अवीव विश्वविद्यालय, बीजिंग कम्प्यूटेशनल साइंसेज रिसर्च सेंटर, चीन, शंघाई जिया टोंग विश्वविद्यालय, चीन, ग्यांगसांग राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, दक्षिण कोरिया, एडिलेड विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलियन स्कूल आफ पेट्रोलियम साइंसेज, यूनिवर्सिडाड पोलिटेकिनिका डी मैड्रिड, स्पेन, हेरियट-वॉट यूनीवेरिस्टी, एडिनबर्ग लिथुआनियाई ऊर्जा संस्थान, और एकक्टे-इंस्टीट्यूटो यूनिवर्सिटारियो डे लिस्बोआ, लिस्बन से रिसर्च इंटर्नशिप के ऑफर हैं।

गणित के क्षेत्र में शोध कार्यों के लिए उनके पास ऑस्ट्रेलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी (ऑस्ट्रेलिया), मियामी विश्वविद्यालय (यूएसए), बुडापेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इकोनॉमिक्स (हंगरी), द चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग (हांगकांग) और यूनिवर्सिटी ऑफ फेरारा (इटली) से भी ऑफर हैं।

अभिषेक ने गैस टरबाइन इंजन पर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ काम किया है। आईआईटी बॉम्बे में फ्लूड स्ट्रक्चर इंटरेक्शन पर और आईआईटी कानपुर में तरल पदार्थ की गतिशीलता पर काम किया है। उनके पास आईआईटी, खड़गपुर, आईआईटी इंदौर और आईआईटी मद्रास से भी ऑफर है। उनके पास फिलहाल आफरों की संख्या उनके उम्र से भी अधिक है जो उनकी प्रतिभा का परिचायक है। 

अभिषेक अग्रहरी ने कहा कि ये आफर हासिल करना इतना आसान नहीं रहा। इसके लिए प्रतिभा के साथ साथ सम्बंधित विषय के बारे में व्यापक ज्ञान का होना बेहद जरूरी है। इसके लिए कई दौर के टेस्ट व इंटरव्यू के दौर से गुजरना पडता है। पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही प्रोफेसर आपको अपने लैब में आने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं।

अपनी रूचि के विषय के बारे में अभिषेक ने बताया कि मैं द्रव यांत्रिकी के व्यापक क्षेत्रों के अनुसंधान विशेष रूप से द्रव संरचना इंटरएक्शन सिद्धांत, प्लाज्मा भौतिकी, जल तरंग यांत्रिकी, गतिज सिद्धांत, गतिज समीकरण और मॉडल जैसे बोल्ट्जमान समीकरण, तरल पदार्थ गतिज युग्मित मॉडल, गणितीय सामान्य सापेक्षता के अलावा ब्लैक होल, गैर रेखीय तरंगों और गेज सिद्धांत के अचानक गुरुत्वाकर्षण पतन के कारण ब्लैक होल का निर्माण में सक्रिय रहा हूं।

अग्रहरी ने कहा कि “चूंकि मेरा सारा काम अनुसंधान उन्मुख है और एक बहु-विषयक होने के नाते मैं शुद्ध गणित, मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, सामग्री विज्ञान, भौतिकी और पेनरोज़ औपचारिकता से लेकर विभिन्न पहलुओं को सीखता हूं। मुझे विश्वास है कि मेरा शोध और काम अब से कुछ साल बाद फील्ड्स और नोबेल का मार्ग प्रशस्त करेगा।’’

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कोविड महामारी के दौरान भारत में आर्थिक चुनौती झेल रहे परिवारों के कई छात्र सफलता का शिखर प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र अभिषेक अग्रहरी भी उनमें से एक हैं जो अपनी सफलता की कहानी को तराशने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

महामारी के दौरान पिछले एक साल में अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और अन्य देशों के शीर्ष संस्थानों से विज्ञान और गणित की कई विधाओं में 55 से अधिक अंतरराष्ट्रीय शोध प्रस्ताव हासिल करने वाले अभिषेक के परिवार को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। शोध कार्य के लिए जनवरी, 2022 से प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों का दौरा करने और अपने सपने - देश के लिए नोबेल पुरस्कार (विज्ञान में) और फील्ड मेडल जीतने को साकार करने के लिए उन्हें प्रायोजकों की तलाश है । 

अभिषेक ने कहा , "इसके लिए  विस्तृत शोध अध्ययन, लगनशीलता और वित्तीय सहायता के साथ साथ कठोर परिश्रम करना पड़ता है । विडंबना यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर मेरा परिवार मेरे शोध कार्य के लिए आर्थिक समर्थन करने में सक्षम नहीं है। जीवन हमारे लिए कभी आसान नहीं रहा। पिछले साल मेरे पिता की नौकरी छूटने के बाद सारी परेशानियाँ शुरू हो गयीं। प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ रहा परिवार गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहा है”।

21 वर्षीय दिल्ली के बहु-विषयक छात्र ने कहा, “अभी मैं शुद्ध और अनुप्रयुक्त गणित से लेकर संघनित पदार्थ भौतिकी, सामग्री विज्ञान, रसायन विज्ञान और रासायनिक जीव विज्ञान तक विभिन्न अनुसंधान विषयों पर आठ संस्थानों के साथ रिमोटली कोलैबोरेशन कर रहा हूँ। मेरे पास जनवरी से अगले साल के लिए शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों से कई प्रस्ताव निर्धारित हैं। मुझे अपने शोध संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रायोजकों की आवश्यकता होगी, ”

निर्णय नियति निर्धारित करते हैं। उन्होंने कहा, प्रारंभ में यह दुष्कर लग रहा था लेकिन एक बार चीजें स्पष्ट हो जाने पर सब कुछ आसान हो जाता है। छात्रों के लिए विज्ञान और गणित दोनों में शोध ऑफर प्राप्त करना दुर्लभ है, लेकिन अभिषेक इस संबंध में अर्हता प्राप्त करने वालों में से एक हैं।

अग्रहरी ने कहा, "विज्ञान और गणित के पूरे इतिहास में किसी को भी नोबेल और फील्डस मेडल दोनों नहीं मिला है। केवल 4 वैज्ञानिक - जे. बारडीन, एम. क्यूरी, एल. पॉलिंग और एफ सेंगर को 2 नोबेल पुरस्कार मिले हैं। शोधकर्ताओं को टोपोलॉजी के क्षेत्र में फील्ड मेडल से भी नवाजा जा चुका है और ब्लैकहोल फिजिक्स-2020 में नोबेल रॉजर पेनरोज़ को और संयुक्त रूप से रेइनहार्ड जेनज़ेल और एंड्रिया गेज़ को दिया गया। इसलिए, मेरे शोध के क्षेत्र में पेनरोज़ फोर्मलिजम का अत्यधिक उपयोग है," ।

अभिषेक हर दिन कुछ नया तलाशने की निरंतर इच्छा में विश्वास करते है। ’‘शोध ने मुझे शुरू से ही आकर्षित किया है क्योंकि मुख्यधारा में जो किया गया है उसका अनुसरण करना मुझे पसंद नहीं है। मैं लगातार कुछ नया तलाशना चाहता हूं।''

उन्होंने कहा कि उन्हें अपने शोध के लिए अन्य स्रोतों से अध्ययन करना होगा क्योंकि जिन विषयों पर वह ध्यान केंद्रित कर रहे हैं उन्हें स्नातक स्तर पर पढ़ाया नहीं जाता है और अधिकतर शोध पोस्ट-डॉक्टरल या पीएचडी स्तर के दौरान किए जाते है।

"वर्तमान में मैं मियामी विश्वविद्यालय, रटगर्स विश्वविद्यालय (दोनों संयुक्त राज्य अमेरिका में) और ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में शुद्ध गणित के क्षेत्र में कुछ अन्य विधाओं के साथ इम्पीरियल कॉलेज, लंदन/ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (रिमोटली) में ब्लैक होल के निर्माण पर काम कर रहा हूं ।"

अग्रहरी ने कहा , ''मैं द्रव यांत्रिकी के व्यापक क्षेत्रों में अनुसंधान में भी सक्रिय रहा हूं, विशेष रूप से द्रव-संरचना अंतःक्रिया सिद्धांत, प्लाज्मा भौतिकी, जल तरंग यांत्रिकी, गतिज सिद्धांत (गतिज समीकरण और मॉडल जैसे बोल्ट्जमैन समीकरण, द्रव गतिज युग्मित मॉडल), गणितीय सामान्य सापेक्षता, ब्लैक होल, गैर रेखीय तरंगों के अचानक गुरुत्वाकर्षण के पतन के कारण ब्लैक होल का निर्माण और गेज सिद्धांत, '' ।

उन्होंने आगे कहा, "मैं समरूपता, स्ट्रिंग सिद्धांत और क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत को प्रतिबिंबित करने के लिए डिफरेंशियल ज्योमेट्री, प्रायिकता और स्टैटिस्टिक्स से लेकर लो डायमेंशनल टोपोलॉजी, बीजीय ज्योमेट्री और एनालिसिस तक शुद्ध गणित के लगभग सभी पहलुओं पर काम कर रहा हूं। "

उन्होंने कहा, "चूंकि मेरा सारा काम अनुसंधान उन्मुख है और एक बहु-विषयक होने के नाते मैं शुद्ध गणित, यांत्रिक और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, सामग्री विज्ञान, भौतिकी और पेनरोज़ औपचारिकता से लेकर विभिन्न पहलुओं को सीखता हूं। मुझे विश्वास है कि मेरे अनुसंधान का क्षेत्र अब से कुछ साल बाद फील्ड्स और नोबेल के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा '' ।

Saturday, June 12, 2021

फेसबुक पोस्ट : *इस "सिस्टम" के आगे "मैं" लाचार हूं...*

*इस "सिस्टम" के आगे "मैं" लाचार हूं...*
*मन करता है, मार-मार कर चटनी बना दूं...*

✒️ *ब्लॉगर और पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे*

(हर जागरूक नागरिक जल्द से जल्द कोरोना की वैक्सीन लगाना चाहता है। लेकिन सिस्टम की खामी, वैक्सीन स्लॉट बुक करने का टाइम फिक्स नहीं होने के कारण परेशान हो रहा है।) 

दोस्तों, 
इस सिस्टम के आगे मैं लाचार हो गया हूं. 
इस सिस्टम का मैं क्या करूं. 
इस सिस्टम का कोई चेहरा भी नजर नहीं आता। 
अगर यह मेरे सामने आ जाए, 
तो मैं मार-मार कर इसकी चटनी दूं। 
लेकिन मुझे पता नहीं कि यह सिस्टम कौन है। 

*अरे! आप क्या समझे...*

मैं "सीजी टीका" की बात कर रहा हूं। वैक्सीनेशन स्लॉट बुक करने के लिए मैं शाम 5 बजे से लेकर रात 11 बजे तक तो कभी कभी रात 3 बजे तक... इस सिस्टम को रिफ्रेश करते रहता हूं।

कि कभी तो कोरोना टीका लगाने के लिए स्लॉट बुक होगा। लेकिन, नहीं बुक होता। इस सिस्टम ने मुझे लाचार बना दिया है। ये सिस्टम ये भी नहीं बताता कि किस समय वैक्सीन के लिए अप्वाइंटमेंट बुक होगा।

मैं, यहां अकेला मैं नहीं हूं। मैं यहां हर छत्तीसगढ़ वासी है। जो टीका लगाने के लिए स्लॉट बुक करना चाहता है। एक तो वैक्सीन का टोटा, ऊपर से सिस्टम की ऐसी गड़बड़ी की वजह से आनलाइन स्लॉट बुक ही नहीं होता। क्या करें आदमी। 

ऐसा सिस्टम बनाता कौन है और क्यों बनाता है कि आखिर में आम आदमी का सिस्टम से भरोसा उठ जाए। और वो उठ जाए।

©® *ब्लॉगर और पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे*

_*नोट : हर छत्तीसगढ़ वासी का दर्द इस पोस्ट में नजर आ रहा है, जो वैक्सीनेशन के लिए स्लॉट बुक कराने की परेशानी झेलता है। कृपया पोस्ट जरूर शेयर कीजिएगा।*_

🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, June 5, 2021

मिलिए बाल वीडियो क्रिएटर बलजीत मिश्रा उर्फ मिल्हू पांडे से

*मोदीजी... 'अगर 7 साल भी स्कूल बंद करना पड़े,*
*तो ये बलिदान हम देंगे.'*....

इन दिनों वायरल एक वीडियो में आप ये प्यारी-सी आवाज जरूर सुन और देख रहे होंगे। 

इस सबसे ज्यादा वायरल वीडियो के दो क्यूट बच्चों में से सबसे छोटे नन्हे कलाकार को आप नहीं जानते होंगे।

... तो मिलिए इस नन्हें कलाकार से।
इनका नाम है मिल्हू पांडे milhu pandey...
इनकी एक पहचान "पूजा का प्रेमी" भी है। पूजा इनकी अॉन स्क्रीन गर्लफ्रेंड है। ये वीडियो सबसे ज्यादा वायरल हुआ थे। इनके वीडियो इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक से लेकर कई वीडियो एप पर है... सभी जगह Baljeet_mishra_70 या milhu pandey की आईडी से सारे वीडियो मौजूद है।

यूट्यूब पर milhu pandey comedy नामक चैनल है। जहां इनके वीडियो अपलोड किए जाते है। इस चैनल के 52 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर है। 30 अगस्त 2014 को शुरू हुए इस चैनल के 95 लाख से ज्यादा व्यूअर्स है। एक चैनल baljeet mishra 70 नाम से भी है। फेसबुक पर baljeet mishra 70 नाम से पेज है। यहां भी इनके कमाल के वीडियो है। 

उत्‍तर प्रदेश के शामली जिले के एलम कस्‍बे के बाल वीडियो क्रिएटर बलजीत मिश्रा उर्फ मिल्हू पांडे ने वीडियो एप VMate के #GharBaitheBanoLakhpati कैम्पेन में 20,000 का पुरस्कार जीता था। उस दौरान नन्हें कलाकार बलजीत ने अपनी मिठास से भरपूर आवाज़ और खूबसूरत अभिव्‍यक्ति से कॉमेडियन भारती सिंह समेत अन्‍य दर्शकों का दिल जीत लिया था।

ये बच्चा एक प्रोफेशनल कलाकार की तरह डायलॉग बोलता है। वीडियो में शायद पिता या कोई पहचान वाले इन्हें गाइड करता है। 

बचपन से ही इनके वीडियो बनाए जा रहे है। इस बच्चे का एक वीडियो काफी पहले वायरल हुआ था जिसमें फौजी बना बच्चा कहता है - "चाहे तुम हमें जान से मार डालो, लेकिन देश के साथ जो गद्दारी करवाना चाहते हो, वो हरगिज नहीं करेंगे"।

बच्चे में गजब की अभिनय क्षमता है। इस बच्चे को अच्छी ट्रेनिंग दी जाए तो बड़ा होकर अच्छा एक्टर बन सकता है।

©® *रामकृष्ण डोंगरे*, ब्लॉगर और पत्रकार

Thursday, April 22, 2021

|| छोड़ो इन बातों को ||

|| छोड़ो इन बातों को ||

कुछ आदमी तक खरीद लेते है...
कुछ आदमी बिक भी जाते है...

लेकिन छोड़ो, इन बातों को...
मुश्किल दौर है कोरोनाकाल में...

खजाना भी हो आपके पास तो
जरूरत पड़ने पर हास्पिटल में बेड,
वेंटिलेटर, आक्सीजन, इंजेक्शन-दवा
तक नहीं खरीद पाओगे।

...क्योंकि उस वक्त बिकने के लिए
ये सब चीजें उपलब्ध नहीं होगी।

सब खरीदने की हैसियत रखने वाला
आदमी उस वक्त अपनी चंद सांसों के
लिए भी बेबस नजर आता है।

©® *रामकृष्ण डोंगरे तृष्णा*

Thursday, January 28, 2021

किसानआंदोलन2020 : क्या आप किसान परिवार से नहीं हो?

©® पत्रकार और ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे 
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दिल्ली और किसान आंदोलन… पिछले 2 माह से दिल्ली के आसपास किसानों का आंदोलन चल रहा है. तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर 27 नवंबर 2020 से चल रहे इस आंदोलन में 26 जनवरी को दिल्ली का घटनाक्रम लोगों के लिए आश्चर्यजनक रहा। एक तरह से किसान आंदोलन से मुंह फेरने जैसा रहा। 

असलियत तो यही है कि देश में किसानों का मुद्दा है और रहेगा और इसे लेकर चल रहा आंदोलन भी सही है। अब बात करते हैं कि 26 जनवरी को दिल्ली में क्या हुआ… 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की जो योजना बुजुर्ग किसान नेता ने बनाई थी, उसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी। युवाओं ने, युवा जोश ने उस दिन का माहौल खराब कर दिया। वे रैली निकालने के लिए जल्दबाजी में थे। इसके अलावा तय रूट को छोड़कर अन्य रास्तों से आगे बढ़ना चाहते थे। और किन्हीं 1-2 खुराफाती युवाओं के दिमाग में यह बात आई होगी कि दिल्ली के लाल किले तक चलते हैं. और इस तरह आंदोलन को बिगाड़ने की कोशिश की गई. 

… जैसा कि सभी जानते हैं देश में दो विचारधाराएं काम करती है. एक हमेशा सत्ता पक्ष का सपोर्ट करती है। और दूसरी विपक्ष के साथ खड़ी नजर आती है। सत्ता पक्ष के पास अपना गणित है, वह अपना स्वार्थ देखते हैं. उन्हें हर उस बात से नाराजगी है जो सरकार से सवाल करें या सरकार के खिलाफ बोले। 

वहीं विपक्ष किसानों या आम लोगों के साथ है। जहां तक किसानों का मुद्दा था, ज्यादातर मध्यमवर्ग किसानों के साथ ही है। लेकिन विचारधारा के खूंटे से बंधे कुछ लोग, जो स्वयं देश की सबसे बड़ी आबादी किसान परिवार से आते हैं, बावजूद इसके वे किसानों के साथ खड़े नहीं होना चाहते। 

अब लोग कहते हैं कि जो दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा है, उसमें हमारे यहां का किसान नहीं है तो हम उनके साथ क्यों खड़े हो। तो असलियत सब जानते है कि दिल्ली के किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान के सबसे ज्यादा किसान हैं। इसकी वजह है दिल्ली के आसपास होना। और बाकी राज्यों के किसानों की तुलना में उनकी मजबूत आर्थिक स्थिति। …क्योंकि इस आंदोलन में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। इतना समय और पैसा खर्च करने की हैसियत सच कहे तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के छोटे किसानों में नहीं है। 
2 महीने से जारी किसान आंदोलन में जिस तरह से रोज खबरें आ रही थी, देश का हर नागरिक इसकी तारीफ ही कर रहा था। शांतिपूर्ण ढंग से, बिना किसी शोर-शराबे के किसानों का धरना जारी था। वार्ता चल रही थी। सरकार बातचीत कर रही थी। हां एक बात यह है कि किसान कृषि बिलों की वापसी के अलावा किसी और बात पर तैयार नहीं है। और सरकार भी बिल वापस नहीं करना चाहती। यहीं पर पेंच फंसा हुआ है। इतना सब होने के बाद भी लोग किसान के साथ है और किसान के साथ रहेंगे। 

… गांव से निकलकर शहर में पहुंचने वाला हर कोई शख्स जानता है कि उसके माता-पिता ने उसे शहर क्यों भेजा। गांव में क्या दिक्कत है। किसानों की क्या समस्या है। सब जानते हैं लेकिन भक्त बनकर अपने तथाकथित भगवान के लिए तालियां बजाना, किसे अच्छा नहीं लगता। तो जिसे अच्छा लगता है। वो बजाते रहे। लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की समस्याएं विकराल है। और उसका हल कोई नहीं निकालना चाहता। इसीलिए हमारे किसानों को इतना बड़ा आंदोलन चलाना पड़ रहा है। 
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