Thursday, March 27, 2025

History Of Hindi Blogging : भारत में हिंदी ब्लॉगिंग का पूरा इतिहास, पहला ब्लॉग कौन सा था...


भारत में ब्लॉगिंग की शुरुआत का सटीक समय निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि यह एक धीरे-धीरे विकसित होने वाली प्रक्रिया थी। वैश्विक स्तर पर ब्लॉगिंग की शुरुआत 1990 के दशक के अंत में हुई, जब 1997 में "वेबलॉग" शब्द का इस्तेमाल जोर्न बर्गर ने किया और 1999 में इसे "ब्लॉग" के रूप में छोटा किया गया। भारत में इंटरनेट का प्रसार 1990 के दशक के मध्य से शुरू हुआ, लेकिन ब्लॉगिंग ने यहाँ लोकप्रियता 2000 के दशक की शुरुआत में हासिल की। 

▪️भारत में ब्लॉगिंग की शुरुआत

भारत में ब्लॉगिंग का आरंभ मुख्य रूप से 2002-2003 के आसपास माना जा सकता है, जब इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ने लगी और लोग व्यक्तिगत अनुभवों को ऑनलाइन साझा करने के लिए प्रेरित हुए। उस समय ज्यादातर ब्लॉग अंग्रेजी में थे, क्योंकि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी समर्थन (जैसे यूनिकोड) सीमित था। हिंदी ब्लॉगिंग ने गति 2005-2007 के बीच पकड़ी, जब यूनिकोड समर्थन व्यापक रूप से उपलब्ध हुआ और लोग हिंदी में टाइपिंग के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग करने लगे। इस दौरान ब्लॉगर (Blogger) और ब्लॉगस्पॉट (Blogspot) जैसे मुफ्त प्लेटफॉर्म भारत में लोकप्रिय हो गए, क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध थे और तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता थी।

▪️ब्लॉगर या ब्लॉगस्पाट में बनी हिंदी की शुरुआती वेबसाइट्स

ब्लॉगर (जिसे पहले ब्लॉगस्पॉट के नाम से जाना जाता था) गूगल का एक उत्पाद है, जिसे 1999 में पायरा लैब्स ने शुरू किया और 2003 में गूगल ने इसे खरीद लिया। भारत में हिंदी ब्लॉगिंग के शुरुआती उदाहरणों में निम्नलिखित ब्लॉग्स का उल्लेख मिलता है:

▪️नारद (Naarad)  

यह हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम है। नारद एक ब्लॉग एग्रीगेटर (संग्रहकर्ता) था, जिसे 2004-2005 के आसपास शुरू किया गया। यह हिंदी ब्लॉग्स को एक मंच पर लाने का पहला प्रयास था। हालाँकि यह स्वयं एक ब्लॉग नहीं था, लेकिन इसने कई हिंदी ब्लॉगर्स को प्रेरित किया और उनकी पहचान बनाई।

▪️चिट्ठा विश्व (Chittha Vishwa)  

यह हिंदी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर का एक उल्लेखनीय ब्लॉग था, जो ब्लॉगस्पॉट पर बनाया गया। इसे 2005 के आसपास शुरू किया गया था और यह हिंदी में ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने के लिए समर्पित था।

▪️कबाड़खाना (Kabaadkhana)  
साभार : इंडिया टुडे वेबसाइट 

यह एक और शुरुआती हिंदी ब्लॉग था, जिसे 2005 में अशोक पांडे ने शुरू किया था। यह ब्लॉगस्पॉट पर बनाया गया और साहित्यिक रचनाओं के लिए जाना जाता था।

▪️मोहल्ला (Mohalla)  

अविनाश दास द्वारा शुरू किया गया यह ब्लॉग भी 2005-2006 के आसपास ब्लॉगस्पॉट पर बनाया गया था। यह सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर केंद्रित था और हिंदी ब्लॉगिंग समुदाय में काफी लोकप्रिय हुआ।

▪️भड़ास (Bhadas)  

यशवंत सिंह द्वारा शुरू किया गया यह ब्लॉग 2007 के आसपास ब्लॉगस्पॉट पर बनाया गया था। यह पत्रकारिता और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष के लिए प्रसिद्ध हुआ।

▪️हिंदी ब्लॉगिंग का विकास

हिंदी ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने में ब्लॉगर/ब्लॉगस्पॉट की मुफ्त और सरल सुविधाओं का बड़ा योगदान रहा। शुरुआती ब्लॉग्स ज्यादातर व्यक्तिगत अनुभव, कविताएँ, साहित्य, और सामाजिक टिप्पणियों पर केंद्रित थे। 2007-2008 तक हिंदी ब्लॉगिंग का एक समुदाय बन चुका था, और कई ब्लॉगर्स ने इसे गंभीरता से लेना शुरू किया। इस दौरान "हिंदी ब्लॉगर्स मीट" जैसे आयोजन भी होने लगे, जो हिंदी ब्लॉगिंग के विस्तार का संकेत थे।

हालांकि, सटीक रूप से यह कहना मुश्किल है कि "पहला" हिंदी ब्लॉग कौन सा था, क्योंकि कई व्यक्तिगत प्रयास एक साथ शुरू हुए। ऊपर उल्लिखित ब्लॉग्स उन शुरुआती नामों में से हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास में दर्ज हैं और ब्लॉगस्पॉट पर बनाए गए थे। ये ब्लॉग्स न केवल हिंदी में सामग्री प्रदान करने वाले पहले प्रयास थे, बल्कि इन्होंने आने वाले ब्लॉगर्स के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया।

Sunday, March 9, 2025

भारत का "Indian YouTube Village" तुलसी गांव Tulsi Village : मीडिया ने जो बताया है, वो पूरा सच नहीं है : पार्ट:1

"समाचार को जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास" कहा जाता है। इस वाक्य से तो आप सब परिचित होंगे। आज अचानक इसकी चर्चा क्यों ? तो चलिए इस पर विस्तार से बात करते हैं। आप सभी ने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के एक गांव तुलसी (TulsiVillage) का नाम जरूर सुना होगा या अपने मोबाइल पर इससे संबंधित कोई रील देखी होगी, कोई खबर पढ़ी होगी। तो चलिए हम बात शुरू करते हैं... 
तो आज हम चर्चा करने जा रहे हैं, यूट्यूबर विलेज (youtuber village) के नाम से मशहूर हो चुके छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित ग्राम तुलसी की…. 

तो सबसे पहले आपको यहां बताना चाहेंगे कि तुलसी गांव समाचार पत्रों यानी मीडिया की सुर्खियां कब बना… 

तो पहली खबर छत्तीसगढ़ के स्थानीय न्यूज चैनल आईबीसी 24 ने 19 अगस्त, 2022 को चलाई थी. इस खबर के वेबसाइट पर अपलोड होते ही तमाम मीडिया ने भी इसको फॉलो किया। वर्ष 2023 में सबसे ज्यादा खबरें इस पर अपलोड हुई। सरकार ने अगस्त सितंबर 2023 यहां यूट्यूब का स्टूडियो बनाया। इसके चलते इस गांव की दूसरी बार खूब चर्चा होने लगी। तब हमने इस पर स्टोरी तैयार की थी। उस वक्त भी मेरी इच्छा इस गांव तक पहुंचने की थी, लेकिन किन्हीं कारणों से मैं पहुंच नहीं पाया। 
तो अब बात करते हैं आखिर पत्रकारिता को जब हम जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास कहते हैं तो पत्रकार बिरादरी से कैसे गलती हो जाती है और जब एक बार वह गलती दर्ज हो जाती है तो वह लगातार कैसे दोहराई जाती। 

4, 000 की आबादी वाले 
गांव में 1,000 यूट्यूबर... 
हर घर में एक यूट्यूबर…. 
यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है। इस तथ्य को किसने लिखा? और क्यों लिखा? इस बहस में नहीं पड़ना चाहता हूं। 

यूट्यूबर का अर्थ है, वह व्यक्ति जिसका स्वयं का यूट्यूब चैनल है। जिस पर वह वीडियो अपलोड करता है। किसी एक वीडियो में काम करने वाले तमाम लोग, एक्टिंग करने वाले लोग, एडिटिंग करने वाले लोग या पूरी टीम को हम यूट्यूबर नहीं कह सकते हैं। 
तकनीकी ज्ञान या तकनीकी समझ के अभाव में यह भूल किसी प्रारंभिक पत्रकार से हो गई और इसे किसी ने सुधारने का प्रयास भी नहीं किया। और हो सकता है कि उसकी मंशा गलत ना रही हो, लेकिन जब इसे लिखा गया था तो उस पत्रकार को भी अनुमान नहीं रहा होगा कि आगे क्या होगा। आज भी इसे दोहराया जा रहा है। 

हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और वेबसाइट पर लिखा जा रहा है, ऐसा गांव, जहां हर घर में यूट्यूबर… जबकि सच्चाई कुछ और है। तो चलिए आपको रूबरू कराते हैं कि सच क्या है। 

इस गांव का सकारात्मक पक्ष यही है कि इस गांव में जब यूट्यूब क्रांति पहुंची तो इसने कई कलाकारों को नई ऊंचाइयां दी। नया प्लेटफार्म दिया और इस गांव में जन्म लेने वाली यूट्यूब क्रांति के जनक युवा साथी जय वर्मा और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मेरी 2023 से ही लगातार बात हो रही है। 9 मार्च को प्रकाशित मेरी स्टोरी में आपको इस गांव का उजला पक्ष देखने को मिल रहा होगा। 
(उस दिन गांव में बीइंग छत्तीसगढ़िया यूट्यूब चैनल के क्रिएटर ज्ञानेंद्र शुक्ला जी के साथ) 

लेकिन आज आप जानेंगे तुलसी गांव की असली कहानी, जो कि अब तक मीडिया द्वारा बताई गई कहानी से अलग है। मीडिया और सोशल मीडिया पर आज भी जो कुछ चल रहा है, वो पूरा सच नहीं है। 

तो रायपुर से 45 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के लिए जब हम 26 फरवरी 2025 को सुबह दस बजे रवाना हुए तो रास्ते में विकास ही विकास नजर आ रहा था। रायपुर रेलवे स्टेशन से जब हम पंडरी होकर बलौदाबाजार रोड पर रवाना हुए तो हमें विधानसभा चौक तक पहुंचने के बाद ज्ञात हुआ कि हमें डीपीएस स्कूल, सारागांव वाली रोड से आगे बढ़ना है। 
तुलसी गांव कोई पहुंच विहीन गांव नहीं है। तुलसी रायपुर के एक बड़े इंडस्ट्रियल हब, तिल्दा इंडस्ट्रियल एरिया से लगा हुआ गांव है। तुलसी और तिल्दा के बीच एक से दो किलोमीटर का फासला होगा। तुलसी तक पहुंचने में हमें रास्ते में दोंदे खुर्द, मटिया, पचेड़ा, तर्रा आदि गांव मिले। मूरा गांव से लेफ्ट लेकर हमने तुलसी गांव का शॉर्टकट और संकरा रोड पकड़ा। आगे हमें बंगोली गांव, अडानी का पावर प्लांट, चिचोली और छतौड़ आदि गांव मिले। मुरा गांव पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा का गांव है। उनके पिता लखन लाल मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। गांव में उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है। 
तुलसी तक हम लोग पहुंचे। रास्ते में जैसा ऊपर मैंने बताया कि अडानी का पावर प्लांट, कई और फैक्ट्री और राइस मिल के हमें दर्शन हो गए। जब तक मैं तुलसी नहीं पहुंचा था, मेरे मन में यही कल्पना थी कि शायद तुलसी गांव रोड से अंदर और चमक दमक से दूर होगा।

 24 फरवरी 2025 को सुबह लगभग 11 बजे वहां पहुंचने पर सच्चाई सामने आई। तुलसी गांव सुशिक्षित और संपन्न लोगों का गांव है। जैसा कि आसपास इंडस्ट्रियल एरिया है तो वहां के कर्मचारी भी बड़ी संख्या भी तुलसी और तिल्दा में निवास करते हैं। 
तुलसी में कॉलेज भी है और आईटीआई भी है। जब हम एक स्टोरी को कवर करने जाते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट करने जाते हैं तो हमें अपने सोर्स को लाइनअप करके रखना पड़ता है। अब हम इस कहानी के असली किरदारों और अन्य लोगों की बात करते हैं। जैसा कि पूर्व में बता चुका हूं कि तुलसी गांव में यूट्यूब क्रांति के जनक जय वर्मा जी और ज्ञानेंद्र शुक्ला जी से मैं लगातार बातचीत कर रहा था। उन्होंने मुझे इस ओर इशारा भी किया था कि तुलसी गांव को मीडिया ने “पीपली लाइव” में तब्दील कर दिया था। तब से गांव के लोग मीडिया से दूरी बनाने लगे हैं और वे बात करने के लिए आगे नहीं आएंगे। 

लेकिन क्योंकि हमें असाइनमेंट मिला था, इसलिए हमारा ग्राउंड पर जाना आवश्यक था। जब हम गांव में दाखिल हो गए तो हम सीधे पंचायत भवन पहुंचे । 

दूसरी कड़ी में आपको पूरी जानकारी…. इंतजार कीजिएगा जरूर। तब तक के लिए अलविदा….

रामकृष्ण डोंगरे
वरिष्ठ पत्रकार और ब्लॉगर 

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Tuesday, February 4, 2025

75वीं जयंती : मेरे पिता की यादों का खजाना


आज ही के दिन (चार फरवरी 1950), जब सूरज ने अपनी पहली किरणें फैलाईं, मेरे पिताजी का जन्म हुआ था। यदि वे आज हमारे बीच होते, तो 75 वसंत देख चुके होते। 

मेरे पिताजी, श्री संपतराव डोंगरे, अब हमारे बीच नहीं हैं; वर्ष 2006 में हृदयाघात ने उन्हें हमसे छीन लिया।

एक किसान के बेटे, ईमानदारी की मूर्ति, जिन्होंने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी की थी, लेकिन समाज और रिश्तेदारों की आलोचना की आँधी में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। 

यदि मैं अपने आप से पूछूँ कि मैं अपने पिता को कैसे याद करता हूँ, तो मुझे कई घटनाएँ याद आती हैं, पर कुछ विशेष क्षण हैं जो मेरे दिल में गहरे उतरे हैं। 

पहली कहानी है-

जब मैं बहुत छोटा था, स्कूल में पढ़ता था। स्कूल की फीस के लिए जब मुझे कुछ रुपए चाहिए होते थे, तो मैं पिताजी की जेब से रुपये लेता और एक पर्ची पर लिख देता कि "पिताजी, मुझे स्कूल की फीस के लिए इतने रुपए लेने पड़े।"

एक दिन, स्कूल से लौटते हुए, मैंने उन्हें मेरे गांव तंसरामाल के पान ठेले पर बैठे पाया। वह अपने मित्रों को बता रहे थे, "मेरा बेटा कितना ईमानदार है, जब वह मेरी जेब से पैसे निकालता है तो कागज पर लिखकर रखता है कि कितने रुपए निकाले और क्यों।"

यह किस्सा मेरे मन में हमेशा के लिए अंकित है। 

एक और स्मृति है - - -

जब हम सभी भाई और मोहल्ले के बच्चे, टीवी देखने के लिए लगभग आधा किलोमीटर दूर जाते थे। वह दौर था, जब टीवी पर रामायण और महाभारत का प्रसारण होता था, और हमारे मोहल्ले में नया-नया टीवी आया था।

हम न सिर्फ इन सीरियलों को, बल्कि चित्रहार और अन्य सामान्य टीवी धारावाहिक भी देखते थे।

एक रात, मूवी देखकर लौटते समय, अंधेरे में एक बड़े लड़के ने हमें डराया, जिससे मेरे बड़े भाई को गहरा सदमा लगा। वे रात में बार-बार उठ जाते और रोने लगते थे। 

अगले दिन, पिताजी ने छिंदवाड़ा से एक नया टीवी लाकर हमारे घर को खुशियों से भर दिया। 

फिर वह दिन याद आता है-

जब मैं भोपाल में काम और पढ़ाई कर रहा था। मुझे एक मोबाइल खरीदने के लिए 4000 रुपए चाहिए थे, लेकिन मेरे पास न तो बैंक खाता था और न ही एटीएम कार्ड।

पिताजी गांव से छिंदवाड़ा और फिर ट्रेन में बैठकर भोपाल आए, पूरी रात जागकर, ताकि उनके पास के पैसे चोरी न हों।

जब वे मेरे छोटे से कमरे में पहुंचे, तो मैंने उन्हें टिफिन का खाना खिलाया। इस दौरान उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई, जो मुझे आज भी रुला देती है। 😭😭😭

1998 में जब मैंने गांव छोड़ा, तब से मेरा मन पैतृक ग्राम तंसरामाल, उमरानाला और छिंदवाड़ा शहर की यादों में डूबा रहता है।

गांव से आते समय, दादी ने पूछा था,

 "क्या तुम वापस नहीं आओगे?"

मां ने हमें सिखाया था कि अपना भविष्य बनाने के लिए बाहर जाना जरूरी है, और हम उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़ते गए। 

मुझे इस बात का दुख है कि मैं अपने पिता को अधिक वक्त नहीं दे पाया, और 2006 के उस मनहूस दिन, 15 नवंबर को, उन्हें हार्ट अटैक आया और वे हमेशा के लिए हमें छोड़कर चल बसे।

तब वे केवल 56 वर्ष के थे।

मैं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में पढ़ रहा था, जब मुझे उनकी तबीयत की खबर मिली।

मैं भोपाल से पिपरिया तक ट्रेन से, फिर बस से छिंदवाड़ा पहुंचा, और अंत में गांव। उन्हें देखकर मेरा दिल टूट गया, और मैं दहाड़ मारकर रो पड़ा। 

एक बच्चे के लिए, पिता का साथ छूटना बहुत दुखद होता है, खासकर जब वह सुख न दे पाए।

पिता के बारे में बातें, यादें और कहानियां तो बहुत हैं, लेकिन उनकी कोई विशेष सीख मुझे याद नहीं आती। भारतीय परिवारों में पिता और बच्चों के बीच संवाद कम होता है, जबकि मां से गहरा जुड़ाव रहता है। माँ की बातें सदा याद रहती हैं, पर मेरे लिए, मेरे पिता भगवान के समान थे।

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Friday, January 31, 2025

आज की कविता : केवल स्वयं को ढूंढना 👁️‍🗨️👁️‍🗨️ है, बाकी सब तो गूगल पर है

केवल स्वयं को ढूंढना 👁️‍🗨️👁️‍🗨️ है
बाकी सब तो गूगल पर है !
जीवन की खोज में, स्वयं को ढूंढना है,
बाकी सब तो गूगल पर है!

समय की बहती नदी में,
अपनी पहचान का मोती ढूंढना है,
भीतर छिपा हुआ सत्य,
जिसे न तो कोई एल्गोरिदम,
न ही कोई सॉफ्टवेयर पढ़ सकता है।

गूगल पर हैं सारे जवाब,
पर अपने प्रश्न का सच्चा आधार कहाँ?
हृदय की गहराइयों में,
अपने सपनों का आलम ढूंढना है।

खोया हुआ आत्मा जब लौटे,
तब समझ आएगी स्वयं की खोज की महिमा,
आभासी दुनिया के भ्रम में न खो जाए,
असली खजाना तो अंदर ही छिपा है।

तो आओ, स्वयं को ढूंढें,
बाकी सब तो गूगल पर है!

©® content creator #dongrejionline ~~रामकृष्ण डोंगरे

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